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________________ रिडणेमिचरित [४] कुरुखेत्तहो भाए. दक्षिणेण . महुसूयण-संदणे सक्खिणेण रिर-साहणु जगडिउ अज्जुणेण णं गिरि-तरु-तिण-वणु फरगुणेण तहिं कालि विओयरु धम्म-पुत्त धज्जुणु सच्चइ खेम-पुत्त ते पच-त्रि दोगहो भिडिय जोह ण इंदिय रिसिहि णिकद्ध-कोह ४ परिसक्कइ जउ जउ कालकेउ धट्टज्जणु तउ तउ हरइ तेउ सुमरेप्पिणु लक्खा-सरण-डाहु स-दुरोयरु दोमइ-केस गाहु तो भीमु-भुवंगम-विसम-सील हक्कारिउ गुरु-गंदणेण लीलु तिहि भल्लेहिंघउ घणु छत्त-दंडु रहु अवरेहिं किउ सय-खंड-खंडु ८ धत्ता असि-फर-कर भिडिउ भयंकर धाइउ सव्वायामेण । मउडुनलु सीसु स-कुंडलु पाडिउ आसत्यामेण ॥ ९ तो तवसुय-पत्थ-सहोयरेण सट्टिहि तोमरेहि विओयरेग वाल्हिक्कहो पाडिउ आयवत्त धउ चामर धणुवरु गुणु विहत्त छठवीसहि दोणे भीमु विद्ध अंगाविण हि छहिं णिसिद्ध छहि कुरुवें सत्तहिं कुरु-सुरण भीमेण-वि भीम-महाभुण ४ पंचासहि छाइड कलस-केउ तिहि मलिउ कण्णहो तणउं तेउ वारहहिं णिवारिउ कुरुवराउ गुरु-णंदणु अहिं विहलु जाउ सहं पुत्तेहि हरिसिउ जण्णसेणु परिरक्वहो केम-वि भीमसेणु तो रण-भर-धुर-धारण-सुरण दस किंकर पेसिय तव-सुएण ८ घत्ता जमल दुइ जण णर-सुय छउजण सच्चइ भइमि विणिच्छिय । सर-लक्खेहि । अमुणिय-संखेहिं दोणें दस-वि पडिच्छिय ।। ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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