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________________ चउवण्णासमो संधि २१७ [६] तो णरवइ अट्ट महाणुभाव संगाम-सएहिं णिग्गय-पयाव किव कण्ण-जयद्दह-कुरु नरिद कुरु-तणय-सल्ल-विंदाणुविंद पहरण-कर कवयावरिय-गत्त दोगहो परिरक्खणे मित्त पत्र एतहे वि धणंजउ धणुसहाउ जगडेवि जालंधर-वलई आउ ४ सर-किरणेहि सोसेवि कुरु-समुद् लक्विजइ रवि व महा-रउद्दु अप्पंपरिहूया धायरट्ठ णिय-पाण लएप्पिणु रणे पणट्ठ अह कुरुव-णराहिव-परम-मित्त वलु दिणमणि-णंदण करे परित्त णिय-सेण्णहो तो मंभीस देवि वरु स-सरु सरासणु करे करेवि ८ घत्ता घणु-हत्थहो धाइउ पत्थहो कज्जल-सामल-देहहो । अइ चौंचलु कणय-समुज्जलु विज्जु-पुजु जिह मेहहो ॥ ९ [७] कण्णज्जुण रणे पडिवण्ण घोरे कर-चरण-सिरालण-पाण-चोरे सच्चइ-विपास-विओयरेहिं रवि-तणउ विद्ध तिहिं तिहिं सरेहिं तेण-वि वर-वइरि-विणासणाई छिण्णइ तिहिं तिणि सरासणाई सत्तिउ तिहिं तिण्णि विसज्जियाउ कण्णेण-वि णवहिं परज्जियाउ पत्थहो विणिवारिउ वाण-जुयलु ण णिहालिउ केण-वि अंतरालु एत्तहे-वि रणगणे दुज्जएहिं वेविस-विपास सत्तुंजएहिं आढत्त अक्वचे सव्वसाइ णरु एक्कु विय भइ लक्खु णाई तिहिं वेविसु हउं वीसहिं विपासु छहिं खुडिउ सीसु सत्तुजयासु ८ धत्ता वहु-मच्छरु पण्णारह ताम विओयरु हणेवि महारह झंप देवि ओवडियउ । पडिवउ रहवरे चडियउ ॥ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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