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________________ २१८ तो कण्णहो भाइ महाणुभाव मारेष्पिणु भीमें परिणिसिद्ध तहि अवसरे पवर- वलुत्तणेण णिय रहहो महीयले झंप देवि ससिधम्मउ णइसहु वहदखत्तु णु लेवि तिसत्ति- सरेहिं कण्णु चउसट्टि सिणिणंदणेण विद्धु परिरक्खिर सोहि कउरवेहि तहि अवसरे विडियए वासरे निसि-धुत्तिए असइ पहुत्तिए अत्थमिए पयंगे स वाहणाई भड - कडवंदण-पिह-मुहाई मिहुणाई व पुट्ठि परम्मुहाई मिहुणाई व वहुरय- रंजियाई मिहुणाई व णिच्चुक्कंघलाई मिहुणाई व पाविय चेयणाई 19 मिहुणाई व पच्छर णीसराई मिहुणाई व पहरण- खेड्याई मिहुणाई व अइ-पासेइयाइ' दिनणिग्गमे तमु धाइउ Jain Education International [ ८ ] धत्ता तडि - रवि-पहु असि फर- रयणु लेखि ४ तिण-वि पट्टविय कयंत - जत्तु चउपासिर सलहेहिं गिरि व छण्णु तिर्हि उर-भुय हय ( ? ) त्रिर्हि णिसिद्ध पशुविसरिंदे पंडवेहि रवि-राहा - सुय णिग्गय-पयात्र चंपाहिउ चउदह- सरेहि वि सेणाहित्रेण धट्टज्जुणेण [९] रयण-समागमे कहिमि ण माइउ रिमिचरिउ ढुक्क भाणु अत्थवणहो । धरिउ पाई णिय-भवणहो || धत्ता विष्णि-वि कुरु- पंडव - साहणाइ पल्लई सिमिरहो संमुहाइ मिहुणाई व चेट्ट-विवज्जियाई मिहुणाई व पसरिय वेयणाई मिहुणाई व पहर-विसंटुलाई मिहुणाई व पसरिय वेयणाई मिहुणाई व जज्जरिओसराई मिहुणाई व लाइय- हयलाई मिहुणाई व मिट्टिय-सर-सयाई उपरि गयणाहोयहो । दुज्जसु णं कुरु-लोयहो | For Private & Personal Use Only ८ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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