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रिट्टणेमिचरिउ
मं भडयण मच्छर पडिहउ दुज्जोहणु तिहुयण-जसु लहउ विस-जउहर-जूअई ढोइयई केस-गह-बसणई जोइयई अवराइ-मि छलई जाई कियई तहुँ ताइ मि चित्ते णाहि थियइं . संधाणु समिच्छइ तव-तणउ म वसु विणासहो अप्पणउ
धत्ता तो वुच्चइ जच्चंधे कुरुवइ-खंधे रण-भर-सयई पडिच्छइ । महु ण करइ णिवारिउ दुट्ट णिरारिउ दुक्कर संधि समिच्छइ ॥ ९
[१०] महु पुत्तहो एक्कु जे गाहु पर संधाणु ण करइ ण देइ धर जिह फणि ण फणामणि अल्लियइ जिह कुंजर मोत्तिउ गउ धिवइ जिह रवि ण समप्पइ णियय पह जिह सुरवइ देइ ण णियय सह स-कसाय-बाय-संखोहिएण . वोल्लिज्जइ दुमय-पुरोहिएण खग-णाहहो काई करेइ फणि फड मोडेवि तोडेवि लेइ मणि सीहहो करि-कुभई केत्तियई पाडेत्रिणु कड्ढइ मोत्तिय रवि जइ-वि णहंगणे संचरइ पह गहकल्लोलु तो-वि हरइ जसु पुण्णइं सो इंदत्तणउं अवहरइ कवणु एउ चिंत-णउं । ८.
घत्ता सायरु रयणइं जोयइ कहो वि ण ढोयइ कायंवरि-मय-मत्तउ । ण सुण्णइ सुरह-मि भासिउ तासु जे पासिउ णवर विरोलणु पत्तउ ॥९
[११] रसु उच्छु ण देइ अ-पीलियउ गंथु वि फलोहु अण-सीलियउ चंदणहो अ-पिट्ठहो गंधु ण-वि साहारु अ-भग्गु ण देइ सवि कसवट्टए कंचणु णिव्वडइ । जइ तुम्हहं सव्वहं आवडइ तो सुदरु सधि-कज्जु करहो मा जलणे जलंतए पइसरहो
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