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पंचधण्णासमो संधि
२३७ [२० तहिं अवसरे दूसासण-पुत्ते अक्खय-णाम-गहण-संजुत्ते दसहिं सरेहिं सुहद्दा-गंदणु हउ स-तुर गु स-सूउ स-संदणु सत्तहिं पडिणिसिद्ध सउहदें हसिउ स-मच्छरु कह-कह-सवें जणणु तुहारउ गउ मह भज्जेवि को तुहु जेण एहि गलगज्जेवि ४ एम भणेवि हउ सव्वायामें सो सम-कंडिउ आसत्था में तहो भुय-डाल-करालहो वालहो केण-त्रि छद्ध गाई मुहे कालहो धाइउ चंदकेउ चंदुग्गउ मोहणु वक्खवेउ सत्तुजउ एक्केक्केण सरेण वियारिय पंच-वि जम-पट्टणे पइसारिय ८
घत्ता तिहिं दूसलु तिहिं सहुतिहिं सलु तिहिं गुरु-सुय-धणु खयहो णिउ । तिहिं सउवलु तिहिं कुरु-वलु पाराउट्टर सव्वु किउ ॥ ९
[२५] तो तवणिज्ज-पुज-सम-वणे दोणायरिउ पपुच्छिउ कण्णे ताय ताय हउ एण कुमार पीडिउ देसु जेम गहयारें दूसासणु गुरु आवइ पाविउ लक्खणु णिहउ राउ रोवाविउ कोसल-पमुहेक केक-पहाणा को जाणइ केत्तिय मुय राणा ४ केण-वि दुद्दम-देहु ण दुम्मइ कहि उवरसु जेण विहि हम्मइ एण मरते मरइ कइद्धउ | पत्थे मरते मरइ गरुडद्धउ तं णिसुणेवि समुण्णय-घोणे चंपाहिवहो कहिज्जइ दोणे जइ गुणु हणइ कोवि तो हम्मइ रण-पिडु अण्णे एउ ण रम्मइ ८
धत्ता
पर जुझइ धणु पालइ
एक्कु ण वुज्झइ गुणु ण णिहालइ
एहु वालु वालत्तणेण । जिह कुसामि किवणत्तणेण ।। .
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