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बावण्णासमो सौंधि
पडिवालिय-सूरई आह य-तूरई वाहेवि रह वर-वाहणई । भिडियई महि-कारणे वे-वि महारणे पंडव-कउरव-साहणई॥ १
[१] तब-णंदणु परिरक्खिउ गरेण गुरु गरहिउ कुरु-परमेसरेण तहिं अवसरे दप्पुप्पेहडेहिं जयलच्छि-सुरंगण-लेहडेहि सहुँ गरेण समिच्छिय-विगहे हिं सामिय-सम्माण-परिग्गहेहि हरिणाइ-समुत्तर-संगिएहिं । अणुदिणु रण-रामालिंगिएहि धिप्पंतेहिं कुसवसणकिएहिं कंसिय-तणु-ताणालंकिएहिं मालव-हिरण-पुरवासिएहिं गोवेहिं णारायण-पेसिएहि सिवि-तुंडिए रण-रस-पच्छलेहिं दरएहिं कुणीरेहि मेहुलेहि जालंधर-मच्छ-तिगत्तएहिं वोल्लाविउ पहु संसत्तरहिं
घत्ता
कुरु-खेत्तहो वाहिरे तो कुरुवइ कल्लए
घोर-रणाइरे दुप्परियल्लए
जइ त अज्जुणु णउ धरहुं । अम्हई हुयवहे पइसरहुं ॥ ९
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