________________
बावण्णासमो संधि
[२] तो करेवि पइज्ज णराहिवेहिं रण-रहस-सललिएहिं पत्थिवेहि हक्कारिउ अज्जुणु अद्ध-रत्ति जइ कह व परिद्विउ णियय-खेत्ति तो अम्हहिं सव्वेहिं कहिउ तुज्झु कुरु-खेत्तहो वाहिरे देहि झुझु जौं णरवर-विदेहिं एम वुत्त वोल्लाविउ पत्थें धम्मपुत्त ४ कि णिहुयउ अच्छमि स टु जेम भड-वोक्क ण सक्कमि सहैवि देव तव-ण दणु पभणइ अखय-तोणु तिह करि जिह मई पावइ ण दोणु तो भुवणुच्छलिय-महा-गुणेण विण्णविउ जुहिट्ठिलु अज्जुणेण धट्ठज्जुणु सच्चइ भीमु जाम को पहु पई हत्थे छिवइ ताम ८
घत्ता हउ भिडमि तिगत्तह' एम चवंतह गय णिसि दिणमणि वित्थरिउ । णह-सिरिए णहत्थह तवसुय-पत्थहं णं अहिसेय-कलसु धरिउ ॥ ९
णिसि-णिग्गमे वड्डिय-कलयलाई ___आलग्गई पडव-कुरु-वलाई गय-मयणइ णिग्गम-दुग्गमाइ हय-फेणोवड्ढिय-कद्दमाई रह-भारत-वसुधराई जय-सिरि-वहु-लइय-सयवराई पहरण-रण-पहरण-पेसियाई दुज्जय-जयलच्छि-गवेसियाई पर-वारण-वारण-वारणाइ दप्पुब्भड भड-संधारणाइ घय-छत्त-छित्त-रवि-मडलाई असि-किरणोहामिय-विज्जुलाई घणु-सोहा-जिय-इंदाउहाई रय-रक्खस-गिलिय-दिसा-मुहाई रुहिर-णइ-रउद्द-महारणा करि-दसण-कसुग्गय-हुयवहाई ८ ।
घत्ता तहिं तेहए दारुणे रण-रुहिरारुणे वाहिय-रहई धणुद्धरई । गंडीव-भयंकर खंडव-डामरु
भिडिउ पत्थु जालंधरहं ॥ ९ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org