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________________ १९४ रिडणेमिचरिउ [४] तहिं अवसरे वुच्चइ महुमहेण लज्जिज्जइ पत्थ पराहवेण जाणहि जि महारहे थवेवि आउ कह-कहव ण दोणे धरिउ राउ पई विणु भुवदंड-भय कराह को अंकुसु मोडइ गुरु-सराह पयरक्खु विओयर जइ-वि थाइ गय-घडह विरुज्झइ सीहु णाई ४ पयरक्स्व गरिंदहो जमल जे-वि मद्दाहिव-सउणिहि धरिय ते-वि अहिमण्णु मईद-किसोरु णाई जेत्तहिं जे कुमार तेत्तहिं जि थाइ सोमय-सिंजय-पंचाल जे.वि कुरु-गुरु सक्कति ण धरेवि ते-त्रि ८ घत्ता रइयजलि-हत्थें वुच्चइ पत्थे वित्थारिय.जस-मडवह । हरि तुहुँ जहिं जमलउ णय-पय-कमलउ कवणु दुक्खु तहिं पंडवह ॥९ ४ संसिऊण वसुएव-णदण करमि जाण(१) सस्सीरिय वल हय-हय वियारिय-महागयं भग्ग-संदण णोल्ल-णरवर वाहिओ धुराहिवेण रहवरो रय-णिहाय-कय-मेह-डवरो पंचयण्ण-णिग्योस-भीसणो कोत-तोय-तणु-तेय-तेइओ धुरि अणुट्ठिओ वाहि संदण खर-खुरुप्प-कप्पिय-उरत्थल मोडियायवत्तं वलुद्धय हिर-मंस-वस-तित्त-णिसियर चडुल-चक्क-चिक्कार-दुद्धरो देवयत्त-रव-वहिरियंवरो पलय-मेह-मयरहर-णीसणो गरुड-पवण-मण-वेय-वेइओ धत्ता धए कंचण-वाणरु पासे महीहरु रहवरे गरु करे स-सरु धणु । रण-रामासत्तेहिं दिट्ट तिगत्तेहिं णाईणवल्लउ जमकरणु ।। ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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