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एक्कपण्णासमो संधि
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पभाणइ कलसकेउ अहो राणा कुरु-परमेसर पुह इ-पहाणा । गरहहि तुहं मई ताय वियक्किउ अज्जुणु केण-वि धरेवि ण सिक्कउ ॥ ण वे-भाय करेवि अप्पाणउ रिउ पहरइ परिरक्खइ राण मइ-मि महाहवे सरेहि णिरुभइ एउ सव्वु गोविंदु विय भई ४ धरउ कोवि छुडु अज्जु-वि अज्जुणु धम्मपुत्त महु जाइ कहिं पुणु गुरु वयणावसाणे रणे दुद्धर गह-अणुरूव भूव जालंधर णं उम्मेठ्ठ दुट्ठ वर कुंजर णं पंचाणण णहर-भयंकर णं जलणिहि मज्जाय-विवज्जियणं खय-काले मेह गलगजिय ८
धत्ता जिव महुमहण-धण जय वइरि-पुरंजय परए सय मुव-वलेण हय । जिव सतुरंग-सगयवर स-धय स-रहवर अम्हहिं पउरव-पहेण गय ||९
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सय भुत्व
कए एक्कवण्णासमो इमो सगो ॥
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