________________
१९०
रिडणेमिचरित
[१८] तो णिवद्ध-जमलक्खय-तोणे पंडव-धइणि परज्जिय दोणे पर एक्कलउ थिउ तव-ण दणु कुरु-गुरु जउ तउ वाहिय-संदणु जाउ महाहउ णिरुवम-चरियह विहि मि जुहिठिल-दोणा यरिह पं रामण-रामहुँ रण-लोलहु णं गयवर हुं गिल्ल-गल्लोलहु ४ णं सद्दलह आमिस-लुद्धह णं केसरिहि परोप्परु कुह णं विसहरह विसम-फुक्कारह ण गोविसह मुक्क-ढेक्कारह छुडु छुड हय हय भार-दुवाए छुड्डु छुडु सूउ पलोट्टिउ पाएं छुडु छुड तब-सुउ णिप्पहु सारिउ छुडु छुड्डु चिहुरह हत्थु पसारिउ ८
घत्ता
लेइ ण लेइ झडप्पेवि दोणायरिय-कय तहो
x x x णं जेमतहो
अज्जुणु ताम समावडिउ । पढमु कवलु हत्थहो पडिउ !! ९.
अंतरे रहु वाहेहि असराले भरेवि दिसामुहु सरवर-जाले पूरिउ देवयत्त सेयासे
पंचयण्णु रउ लच्छि-णिवासे एक्कीभूउ णिणाउ भयंकर गउ वंभंड णाई सय-सक्कर णर-करे परियं भिउ गंडीवें खय-जलहरेण व गउिजउ जीवें ४ फुरइ रहद्धए कंचण-वाणरु णं गिरि-सिहरे लग्गु वइसागर एक्कु-वि णर-सर-णियरु भयंकर अण्णु.वि रण-रउ रयणि-भयंकर काइ-मि तेहिं ण णिहालिउ दोणें रहु परियत्तिउ पच्छिम-घोणे णिय-णिय-सिमिरह वलई पयट्टई ण खय-जलणिहि-जलई विसट्टई ८
पत्ता गरहिउ गुरु कुर-णाहे भग्गुच्छाहें तुहुं मई ताय वियक्कियउ । अच्छउ वसुह जिणेवी महु सिय देवी राउ-वि घरेवि ण सक्कियउ॥९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org