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एक्कपण्णासमो संधि
[१६] तहिं अवसरे अणिवाइय तोणे कुरुत-राउ वोल्लाविउ दोणे अज्जु जुहिहिलु धरमि सहत्थे जइ कयाइ अतरिउ ण पत्थे । एम भणेवि ते णयणाणंदणु पंडु-वलहो ओवाहिउ संदणु पवरुत्तंग-सिहरु सय-कंदर ण मयरहरहो ढोइउ मदरु कर-पहराहय-हय उद्धाइय अग्गिम-भाय णहंगणे लाइय। रहु परिसक्कइ जेत्तहे जेत्तेहे रुड-णिरं तर तेत्तहे तेत्तहे अग्गए गुरु कयं तु जिह पावद पच्छए रुहिर-पवाहिणि धावइ ।
४
घत्ता
दोण-दिवायरु पत्तउ अज्जुण-तरु-परिचत्त
सरवर-तत्तउ पाणक्कतउ
पंडव-साहणु परिभवइ । कवण छाहि जहिं वीससइ ।। ८
तो तव-सुरण चउम्विह-वाहणु भग्गु असेसु-वि कउरव-साहणु वलि म भीस देवि कलसद्धउ लग्गु महीहरे ण धूमद्धउ पहु वारहेहिं सरेहिं समाहउ छिण्णु जीउ धणु-लट्ठि-सणाहउ ताम कुमार जुर्वधर धाइय विण्णि-वि विहि भल्लेहि विणिवाइय ४ दसहि सिह डि णउलु तिहिं ताडिउ पंचहिं सच्चइ कह-वि ण पाडिउ सत्तहि मदि-पुत्र लहुयारउ सो ण को-वि जो ण हउ ति-वारउ वग्धंदतु वर-वग्ध-परक्कमु सीहसेणु सीहोवम-विक्कमु विणि-वि चक्क-रक्स्व तव-तेयहो खुडिय-सीस पेसिय जमलोयहो ८
घत्ता तोणा-जुयल-अणिट्ठिउ चाउ-सइट्ठिउ अतुल-परकम्मु पवर-कर । पक्कल-हय-रह-दुजउ साउ-सहिज्जउ सो जिण तु रणे दोण-सर ॥९
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