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________________ ६० रिटणेमिचरिउ [१८] णहे ताव समुठिय दिव्व वाणि अहो सुर-णइ-गंदण कढिण-पाणि ण णिहम्मइ एहु केण-वि परेण मारेवउ पइं-जे महा-सरेण वयणेण तेण थिउ सावहाणु किर कड्ढेवि धिवइ ण घिवइ वाणु तो सेए वर-करवालु लेवि धणु-गुण गंगेयहो छिण्ण वे-वि ४ करे करइ सरासणु अवरु जाम हउ भीमें सठिहिं सरेहिं ताम तहिं णर-णंदणेण वलुत्तणेण विसहिं भल्लेहिं धट्ठज्जुणेण सइणेए आहउ सर-सरण पंचहिँ एक्केक्के कइकएण ते सर णरवर-सरे सावलेव विणिवारिय सीहें हरिण जेम्व ८ धत्ता पलय-करेण सरेण विद्रु तरंगिणि-तोए । पाडिउ महियले सेउ कलयलु किउ कुरु-लोए ॥ ९ [१९] संभरिउ मरते. देव-देउ परिणिमल्लु णिक्कलु णिरुवलेउ गिरवज्जु णिराउहु णिरुवसागु णिरवेक्खु णिरंजणु सुहय-भग्गु पच्चक्खु परोक्खु पमाण-सिद्ध परमट्ठ-महा-गण-समिद्ध सयलामल-केवल-णाण-णयणु णिरुवम-परमागम-वयण-वयणु ४ जसु तिमि सियायव-वारणाई तइलोय-पहुत्तण-कारणाई जसु परमासोउ असोय-दाणि जसु पर-उवयारिणि परम वाणि जसु मणहरु सुरतरु कुसुम-वासु भा-वलय-वलय-आवयवु जासु घत्ता तं देवाह-मि देउ तिहुयण-मंगल-गारउ । सग्गु वलग्गु कुमारु सरेवि स्इंभु-भडारउ ॥ इय रिटुणेमिचरिए धवलइयासिय-समुएव-कए अद्वतीसमो संधि-परिछेओ समतो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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