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अद्वतीसमो संधि
[१६] तिहुवण-वहिरण-रण-पडह देवि गगेय-सेय पडिलांग वे-वि तो परिओसिय-सक्कंदणेण पहिलउ जे विराडहो गंदणेण द्सह-रवि-किरण-भयंकरेहि गंगा-सुउ छाइउ सरवरेहि तहिं अवसरे पुलउब्मिण्ण-गत्तु दुजोहणु लेहु भणंतु पत्तु आइटु विविंझइ अतुल-मल्लु दुम्मुहु कियवम्मु सुसम्मु सल्लु सयलेहि-मि अ-खत्ते लइउ सेउ सयलह-मि स-धणुवर छिण्ण केउ सयल-वि समरंगणे किय णिरत्थ वियलिय-पहरण संसुढिय-गत्त भाईरहि-णंदणु परम-चिंधु पण्णारह-वारह-सरेहिं विद्ध
घत्ता तेण-वि थाणु रएवि सर सरवरेहिं परज्जिय । अवसें जंति ण मोक्खु णिग्गुण धम्म-विवज्जिय ॥
[१७] पुणु दूरोवग्गिय-वम्महेण हउ दसहिं सरेहिं पियामहेण सेएण-वि किय-कडवंदणेण जेट्टेण सुजेट्टा-र्णदणेण घउ ताडिउ पाडिउ छत्त-दंडु गंगेय-सरासणु किउ दु-खंड लइ वट्टइ आइउ ताय-ताउ लहु णासहि हाहाकार जाउ तो सरि-सुएण धाय-दंडु छिण्णु विहिं भल्लिहिएक्के सूरु भिण्णु अवरेहि चऊहुं चयारि वाह मण-पवण-ग्वगाहि व-जव-सणाह वि-रहेण धरतें घित्त सत्ति स-वि दसहिं सरेहिं विहत्त झत्ति पुणु मुक्कु कुमारे लउडि-दंडु सो घरेवि ण सक्किउ रणे पयंडु ८
धत्ता
स-घउ स-तुरउ स-सूउ रहु गंगेयहे देवेहिं दुंदुहि दिण्णु कउरव-णादु
चूरिउ । विसूरिउ ॥
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