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रिगेमिचरिउ
[१४] जो जो को-वि ढुक्कु पारक्कउ तिहिं तिहिं सरेहिं भिण्णु एक्केक्कउ लक्वण-पमुहह विक्कम-सार हं णिहय चउद्दह सहस कुमारह स-मउड-सिर-पट्टह भालय लह मणि-कुंडल-मंडप-गंडयलह कंत्रालंकिय-कंव-सणाहह कंकण-केऊरुज्जल-वाह मेहल-वलयाणद्ध-णियंवह किकिणि-मुहल-ताल-पालंवहं पंडुर-चामर-पंडर-छत्तह धरिय-फरह कट्ठिय-असि-पत्तह आजाणेय-तुरय-रहवंतह
विविह-पडाय-विविह-वायत्तहं ताम-महासिएण कियंतहो णावि जाउ भोयणे वइसतहो ८
धत्ता हय वालेण सरवर-जालेण सहस चउद्दह खत्तियह । गउ आयह गण्णु विसा यह णाह विह जमि केत्तियह ॥ ९
(१५) वासव-सुय-सुरण महि-कारणे जं गिट्टविय कुमार महा-रणे तं विदाणउ थिउ कुरु-साहणु मुक्क-महाउहु फुसिय-पसाहणु णिच्चल-णयणु णिरुज्जम-गत्तउ सव्वाहरण-सोह-परिचत्तउ पुत्त-विओएं रोवइ राणउ सुहड-मडफ्फर-भग्गु चिराणउ ४ हा हा देहि वाय महु लक्खण पई विणु थिय भाणुवइ अ-लक्षण पई विणु कुरुव-लोउ आदण्णउ पई विणु सोम-वंसु उच्छण्णउ पई विणु जय-सिरि अण्णह ढुक्की पई विणु महु जस-वल्लरि सुक्की पई विणु सुहड-ढक्क कसु वज्जइ पई विणु राय-लच्छि कसु छज्जइ ८
घत्ता
पहु जूरइ जो मुच्चइ
आस ण पूरइ सो ण पहुच्चइ
गउ उच्छिण्णउं कुरुव-वलु । हय-विहि मई सहु कवणु छलु ॥ ९
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