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________________ २३४ रिगेमिचरिउ [१४] जो जो को-वि ढुक्कु पारक्कउ तिहिं तिहिं सरेहिं भिण्णु एक्केक्कउ लक्वण-पमुहह विक्कम-सार हं णिहय चउद्दह सहस कुमारह स-मउड-सिर-पट्टह भालय लह मणि-कुंडल-मंडप-गंडयलह कंत्रालंकिय-कंव-सणाहह कंकण-केऊरुज्जल-वाह मेहल-वलयाणद्ध-णियंवह किकिणि-मुहल-ताल-पालंवहं पंडुर-चामर-पंडर-छत्तह धरिय-फरह कट्ठिय-असि-पत्तह आजाणेय-तुरय-रहवंतह विविह-पडाय-विविह-वायत्तहं ताम-महासिएण कियंतहो णावि जाउ भोयणे वइसतहो ८ धत्ता हय वालेण सरवर-जालेण सहस चउद्दह खत्तियह । गउ आयह गण्णु विसा यह णाह विह जमि केत्तियह ॥ ९ (१५) वासव-सुय-सुरण महि-कारणे जं गिट्टविय कुमार महा-रणे तं विदाणउ थिउ कुरु-साहणु मुक्क-महाउहु फुसिय-पसाहणु णिच्चल-णयणु णिरुज्जम-गत्तउ सव्वाहरण-सोह-परिचत्तउ पुत्त-विओएं रोवइ राणउ सुहड-मडफ्फर-भग्गु चिराणउ ४ हा हा देहि वाय महु लक्खण पई विणु थिय भाणुवइ अ-लक्षण पई विणु कुरुव-लोउ आदण्णउ पई विणु सोम-वंसु उच्छण्णउ पई विणु जय-सिरि अण्णह ढुक्की पई विणु महु जस-वल्लरि सुक्की पई विणु सुहड-ढक्क कसु वज्जइ पई विणु राय-लच्छि कसु छज्जइ ८ घत्ता पहु जूरइ जो मुच्चइ आस ण पूरइ सो ण पहुच्चइ गउ उच्छिण्णउं कुरुव-वलु । हय-विहि मई सहु कवणु छलु ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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