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पंच वण्णासमो संधि
[१२] सरहतु ताव विसाइ पधाइउ सहिहिं सरेहिं रणंगणु छाइउ तो रणे अमरिसु वढिउ वालहो एक्के सरेण छुद्ध मुहे कालहो विससेणहो सारहि-वि णिवाइउ । छिण्णु सरासणु धउ दोहाइउ तो सत्तमेण सत्तु हक्कारिउ सोवि कयंत-गयरे पइसारिउ ४ सल्लहो गंदणेण भञ्जहो रुप्प-रहेण महारहु वाहिउ एक्कहो काई रणंगणे अवगाहिउ किं पंचह भूयह-वि ण लज्जहो एप भणेवि तिहिं सरेहिं समाह उ णर-णंदणेण विछिण्णउ वाहउ जम-जीहोवमेण लल्लक्के सिरु तोडिउ तइएण पिसक्के ८
घत्ता जो पहरइ तं पडिपहरइ रणगुहे पउ-वि ण ओसरइ । धणु ण धरइ जो करु पसरइ विहुरे-वि तिणि ण वीसरइ ॥ ९
[१३] जं विणिवाइउ सल्लहो गंदणु मित्त-सरण रुद्ध रिउ-संदणु एक्कु कुमार अणेक्केहिं हम्मइ तो-वि तेहिं अवसाणु ण गम्मइ तं वरु दिण्णए णिरुवम-छायए। वामोहिउ गंधव्वए मायए वलि वोक्कड रणे दुग्गहे दिण्णा पंच-वरिस सहयार-त्र छिण्णा ४ जो जो ढुक्कइ तं तं मारइ णाई कियंतु जे जगु संघारइ सिरेहिं कबंधेहि गरेहिं तुरंगेहिं कर-चरणंगुलिहिं अगोवगेहि खवसेहिं सीसक्केहि तणु-ताणेहिं कुसुमल-वट्टि-वद्ध-पल्लाणेहि चामर-पक्खर-गुड-पावरणेहिं कुडल-कडय-किरीडाहरणेहि
घत्ता
गय गत्तेहिं सोबतहो
रह-धय-छत्तेहिं णाई कयंतहो
सव्वेहिं धरणि अल करिय । सेज्ज कुमार पत्थरिय ॥ .
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