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________________ छत्तीसमो संधि घत्ता णरु णिभच्छिउ माहवेण दुक्कर जाइ जियंतु रणे महु पासिउ को मायारउ । तई सहियउ सामि तुहारउ ॥ ९ [१९] नारायण-वयण-किंवाण-हउ माया-णरु णासेवि कहि-मि गउ इंदहणु-सम-प्पहु लेवि धणु पारद्ध पडीवउ घोरु रणु तहिं काले पसारिय-भुय-जुयलु विच्छाय-परिट्ठिय-मुह-कमलु परिमोक्कल-केसु किउद्ध-कम सव्वंग-णिवदुद्दहण-समु वसुरवु पडंतु दिगु णहहो परिगलिउ चाउ करे महुमहहो मुच्छा-विहलंघलु सो हुयउ कह-कह-वि चेयण-भावु गउ परियाणिय माया-कवड-किय हय-सल्लहो अणुहव-पाण-पिय खय-सूर-समप्पह-सरवरेहि रिउ वरिसिउ महि सहुँ महिहरेहिं ८ धत्ता दड्ढ महातरु सिहि-सरेहिं गिरि चूरिय कुलिस-पहारेहिं । जय-जय-कारिउ महुमहणु मयरद्धय-पमुह-कुमारेहिं ।। [२०] तहिं अवसरे सारहि विण्णवइ एहु दुज्जउ सोह-पुराहिवइ जावण्ण-वि अत्थई पट्टवइ जावण्णु-वि साहणु णिट्ठवइ जावण्ण-वि चूरइ रह-तुरय जावण्ण-वि हणइ महा-दुरय परमेसर पहरहि ताम तुहुँ उज्जालहि जायव-जणह मुहु हणु चक्के वरि-विणासणेण पडिसत्तु-महा-अरि-दारणेण तं णिसुणेवि झत्ति पलित्तु हरि पलयग्गि-सम-प्पहु मुक्कु अरि भंजंतु असेसहं माण-सिह फुरमाणु-दिवायर-विंदु जिह दोहाविउ तेण विमाणु णहे सहुँ सल्ले णिवडिउ धरणि-वहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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