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________________ .८४ रिटुणेमिचरिउ कुरुव-णराहिउ वलिउ स-मच्छरु मीणे परिट्ठिउ णाई सणिच्छरु । विण्णि-वि स-सर-सरासण-हत्था विण्णि-वि रण भव धरे वि समत्था विण्णि-वि दिहि-कर णियय-कुडुवहं विष्णि-वि पिय भाणुवइ-हिडिंबह विण्णि-वि पुत्त कोंति-गंधारिहि वे-वि पसंसिय सुरवर-णारिहिं ८ घत्ता वे-वि पंडु.धयरट्ठ-सुय वे-वि घुडुक्कय-लक्खण-पाला । सर-धारायर-दुब्बिसह णं थिय पाउस कालुण्हाला ॥ [११] तो धयरट्ठ-जेट्ठ-दायाएं णवहिं सरेहिं विद्ध कुरु-राएं दसहि विओयरेण दुजोहणु एम महंतु जाउ आओहणु छिण्णु सरासणु कउरव-णाहहो आजाणुव-पलंव-वर-वाहहो फणि-लंछणेण अवरु घणु लेप्पिणु विद्ध धणंजय-जेठु धरेप्पिणु ४ तणु तणु-ताणु वाणु गउ भिंदेवि महिहे पइठ्ठ सुठ्ठ अहि छिदेवि तेण भीमु घुम्माविर घाएं णं पायव-फलोहु दुव्वाएं लइ लद्धो सि मित्त कहिं गम्मइ एउ अवसरु जहिं वइरि णिहम्मइ एम भणंतु सत्तु-वल्लु धावइ णर-सुउ ताम ढुक्कु जमु णावइ ८ धत्ता तेण सरेहिं अराइ-वलु - लीहा-बद्ध धरिज्जइ दूरे । दूसह-किरण-भयंकरेण तिमिरु णाई ओसारिउ सूरे ॥ ९ [१२] चेयण-भाउ लहेवि सु-धीमें ओसारिय किव-कुरव-जयद्दह धाइय कुंति-सुयहो रणे धोरहो सयल.वि हेम-सरासग-धारा , पंचवीस सर पेसिय भीमें .. गंधारी-सुय ताम चउद्दह मत्त करि-व केसारेहे किसोरहो सयल-वि पणइ-मणोरह-गारा ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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