________________
अट्टतीसमो संधि
__ ५३ भणु अणु अज्ज-वि करहि खेउ कहिं गउ गंडीव-सरावलेउ भणु जमलहो जमलीहोह वे-वि वावरहु कोंत असिवरइं लेवि गउ दूउ कहिउ तं णिर वसेसु विसु जलणु कय-ग्गहु वण-किलेसु जइ सुमरहो तो किं विसहिएण अमरिस-जस-पउरिस-विरहिएण ८
धत्ता तुम्ह-वि अम्ह-वि होउ रणु अट्ठारह वासर । सहुँ वासवेण णियंतु वासुएव-चक्केसर ॥
पट्टविउ कहेवि जं कउरवेहि गउ सउणिहे णंदणु कहिय वत्त तहिं तेहइ काले अणज्जुणेण अट्ठारह दिवसिउ जुज्झु जाम पच्चक्खु पेक्खु णिय-रहवरत्थु भयदत्त-जयद्दह-अंगराय कउरवहं पहुच्चइ भीमसेणु परिपालिय-सयल-महावलेण
पडिवण्णु सव्वु तं पंडवेहिं थिय कुरु सरहस रण-रस-पमत्त विण्णवेवि वुत्त हरि अज्जुणेण महु महुमहु जमलीहोहि ताम हउं काई करमि गंडीव-हत्थु मारमि हरि हरिण व राय-राय णव-णलिण-मुणालहं जिह करेणु सल्लेवउ सल्लु जुहिट्ठिलेण
धत्ता
भणइ जणद्दणु एम्व भमर-सिलीमुह-अक्कु
छुडु आढवहो महाहउ । जहिं फरगुणु तहिं माहउ ॥
९
हरि-बयण-वयणु हियवइ घरेवि गय णिय-णिय-णिलएहिं पंडु-पुत्त णिसि वियलिय संझा-समउ ढुक्कु रवि उग्गउ पसरिउ कर-णिहाउ
5.3. माहव पभणिज्जइ अज्जुणेण.
सोयाहिउ सेणावइ करेवि णं केसरि गिरि-कंदरेहिं सुत्त थिउ तारा-मंडलु पह-विमुक्कु में भिडहो णिवारउ णाई आउ ४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org