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________________ रिठ्ठणेमिचरिउ आयामिय-गरुयाओहणेण परमेसर तुम्ह हुं कवण चित अट्ठारह वासर भरु महुँ जे तो वरि सब्बई सेण्णई णियंतु वोल्लिज्जई तो दुज्जोहणेण किं हउ ण भिच्चु साहणु ण कित(?) इयरइ-मि वहरि पहणेवउं जे पर पंडव-कउरव खयहो जंतु ८ घत्ता पच्छए पहरहो वे-वि एम्व भणेविणु सई जे तुहुं हरि-कारणे तेयहो । वद्रु पटु गंगेयहो ॥ णइणंदणु सेणावइ करेवि सुउ सउणिहे सयण-विरोहणेण तो एम भणिज्जहि धम्मपुत्त विसरिज्जइ कालु ण दुम्वियड्ढ जिय जूए कयत्थिय केस-गाहे परिपीयइं णिज्झर-पाणियाई दोमइ परिहविय जयबहेण थिय मच्छहो घरे पच्छण्ण-त्त थिउ कुरुवइ रण-भर-धुर धरेवि पट्ठविउ दूउ दुज्जोहणेण किल संढेण णउ अच्छणह जुत्तु तुम्हई तो लक्खा -भवणे दड्ढ ४ वण-मग्गे महण्णवे जिह अगाहे अवरइ-मि दुहई परियाणियाई जक्खें विद्दविय विस-द्दहेण तं पाविय जंण कयावि पत्त ८ घत्ता तो-वि ण तुहुं अभिट्टहि । परए स-भायर फिट्टहि ॥ ९ सुमरेवि दुक्खइं ताई कहिं महु जाहि जियंतु तव-तणयाणुवहो सहोयरासु किल संढहो अक्खु विओयरासु णउ लज्जहि गज्जहि लउडि लेवि भंजमि दुज्जोहणु ओरु वे-वि दूसासणु मारमि कालु पत्त सो एहु अवसरु तुई सो जे सत्त खल खुद्द पिसुण हय दुब्बियड्ढ ते कहिं गय सुहडालाव संढ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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