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अद्वतीसमो संधि जय-जस-विक्कम-सारा जायव-वाहिणि पूरइ । कासु णिवंधमि पटु मागह-णाहु विसरइ ॥१॥
[१] हए रुहिरहो णंदणे हेमणाहे अत्थइरि पराइए दिवस-णाहे णिय-सिमिरहं गयई सवाहणाई चक्काहिव-मागह-साहणाई समरुद्धरियाउह-करयलाई वण-वियणाउर-वच्छत्थलाई आणिय-पिय-पाहुड-मोत्तियाई परिहव-पक्खालण-सोत्तियाई परिपूरिय-रण-वहु-दोहलाई जय-लच्छि-करग्गह-सोहलाई सामिय-पसाय-णिक्खय-कराई वंसावसेस-थिय-असिवराई संभाविय-जय-सिरि-संगमाई णिग्गंत-खलंत-तुरंगमाई लुय-चिंधई खंडिय-रहवराई सर-भरिय-णिरतर-गयवराई
धत्ता ताम समुट्ठिउ चंदु जोण्ह करतु ण थक्कइ । तम-करि-जूहहो मज्झे णं केसरि परिसक्कइ ॥
[२] णिय-णिय-अत्याणेहिं थिय गरिंद मगहाहिव-माहव जिह सुरिंद जरसिंधु विसूरइ णिय-मणेण विणु एक्के रुहिरहो णंदणेण अत्थाणु महारउ णउ विहाइ गयणंगणु ससहर-रहिउ णाई रणे दुज्जय जायव-जोह जेत्थु सेणावइ किज्जउ कवणु तेत्थु After Ghatta 3. reads :
लक्षशतानि नराणामन्यान्यपि मादृशानि जीवयसि । उपकुरु ममापि किंश्चित् यत्र शत तत्र पचाशत् ।।
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