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पंचवण्णासमो संधि
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परिभग्ग रणंगणे गरुय-णाय तहिं अवसरे दूसासणु पलित्तु अहो सल्ल-कण्ण-किव-धायरट्ठ उहु राय-बाल कालाहिमण्णु धयरट-रिंदूसासणेण विसमेण सुट्ट दृसासणेण जोत्तारु वुत्त रहु वाहि वाहि तो ९म भणेवि उत्थरिर तासु
स-परक्कम विक्कम कह-मि णाय णं परिणय-विस-तरु संपलित्त कल्होय-वण्ण वण-धायरट्ट दृज्जउ णामेण किलाहिकमाणु मई जइ ण भग्गु दूसासणेण तो पहेण जामि दूसासणेण फेडिजइ णरवर-पवर-वाहि जे गारवर-विदह जणिउ तास
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घत्ता
चल-संदणु वर-वंसउ
अज्जुण-गंदणु भड-विट्सउ
आयामिउ दूसासणेण । जिह विंझइरि हवासणेण ।। ९
ते णरवर-जच्चंध-गंधारि-पुत्तेण कोवाणलुज्जाल-माला-पलित्तेण रयणायरेणेव मज्जाय-मुक्केण कूर-गहेणिव णिय-थाम-चुक्केण पेयाहिवेणेव अच्चंत-कुद्रेण पंचाणणेणेव गय-गंध-लुटेण हर-गंदणेणेव वर-मोर-चिघेण पच्चारिओ पत्थ-पुत्तो विरुद्धेण ४
ओसरु पराहुत्तु किं संपहारेण जज्जाहि मा मरहि महु दिट्टि-पहारेण तो भणइ णर-णंदणो किं पलात्रेण जाणिज्जए तेय-पूरो पयावेण एवं भणंतस्स किर कवण भड-लीह सय-खंड-खंडाइं किं ण गय तउ जीह गोगहेण गांगेय-मरणेण णउ लज्ज तं तुहु-मि पावेसि खल खुद्द णो गज्ज ८
धत्ता मय-मत्तहो तुझु अ-पत्तहो तेण ण फाडमि वच्छयलु । परमत्थेण भोमु सहत्थेण दिसहि धिवेसइ रुहिर जलु ॥ ०.
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