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________________ पंचवण्णासमो संधि २२१ ४ परिभग्ग रणंगणे गरुय-णाय तहिं अवसरे दूसासणु पलित्तु अहो सल्ल-कण्ण-किव-धायरट्ठ उहु राय-बाल कालाहिमण्णु धयरट-रिंदूसासणेण विसमेण सुट्ट दृसासणेण जोत्तारु वुत्त रहु वाहि वाहि तो ९म भणेवि उत्थरिर तासु स-परक्कम विक्कम कह-मि णाय णं परिणय-विस-तरु संपलित्त कल्होय-वण्ण वण-धायरट्ट दृज्जउ णामेण किलाहिकमाणु मई जइ ण भग्गु दूसासणेण तो पहेण जामि दूसासणेण फेडिजइ णरवर-पवर-वाहि जे गारवर-विदह जणिउ तास ८ घत्ता चल-संदणु वर-वंसउ अज्जुण-गंदणु भड-विट्सउ आयामिउ दूसासणेण । जिह विंझइरि हवासणेण ।। ९ ते णरवर-जच्चंध-गंधारि-पुत्तेण कोवाणलुज्जाल-माला-पलित्तेण रयणायरेणेव मज्जाय-मुक्केण कूर-गहेणिव णिय-थाम-चुक्केण पेयाहिवेणेव अच्चंत-कुद्रेण पंचाणणेणेव गय-गंध-लुटेण हर-गंदणेणेव वर-मोर-चिघेण पच्चारिओ पत्थ-पुत्तो विरुद्धेण ४ ओसरु पराहुत्तु किं संपहारेण जज्जाहि मा मरहि महु दिट्टि-पहारेण तो भणइ णर-णंदणो किं पलात्रेण जाणिज्जए तेय-पूरो पयावेण एवं भणंतस्स किर कवण भड-लीह सय-खंड-खंडाइं किं ण गय तउ जीह गोगहेण गांगेय-मरणेण णउ लज्ज तं तुहु-मि पावेसि खल खुद्द णो गज्ज ८ धत्ता मय-मत्तहो तुझु अ-पत्तहो तेण ण फाडमि वच्छयलु । परमत्थेण भोमु सहत्थेण दिसहि धिवेसइ रुहिर जलु ॥ ०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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