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________________ १४० रिट्ठणेमिचरिउ माणा एम भणेवि महा-धणु-धारउ पंचहिं सरेहिं विद्ध पडिवारउ गय णिरत्थ अद्धवहे परज्जिय णं कुरुवइ-सम्माण-विवज्जिय मई पच्चारिय सयल-वि राणा अहो किव कण्ण कलिंग जयद्दह चित्तसेण सल्लह सल दुम्मह दोण दोणि मंदाहिव सउवल सोमयत्त भयवत्त विहव्वल जो सक्कइ महु कंडा-कंडिहे सो रहवरु पडिखलउ सिहंडिहे एहु से जण्णसेणि परिसक्का । रक्खउ गंग-पुत्त जो सक्कइ एम भणेवि अणिज्जिय-वाहणु। धरिउ धणंजएण कुरु-साहणु घत्ता रेल्लंतु छत्त-धय-चिंघई धाइय णर-णारायण-धुणि । रिउ णासेवि गय गंडीवहो जहिं ण सुणिज्जइ कहि-मि झुणि ।। ९. णिएवि भयंकर भड-कडवंदणु दुज्जोहणेण वुत्त णइ-णंदणु अहो परमेसर गो-विस-कंघर समर-महा-भड-दुधर-धुरंधर णर-णारायण-णियर-मिज्जंतउ पेक्खु महारउ वल्लु भज्जतउ भणइ पियामहु किं आदण्णउ अच्छहि महु भुय-दंड-णिसण्णउ ४ जुज्झमि रणे रण-रामासत्तउ विजउ पराजउ दइवायत्तउ दिवे दिवे दस-दस-सहस गरिंदहुं मारमि पेक्खंतहं अमरिंदहुं हणमि ण जइ तो आण तुम्हारी पुत्तेत्तडिय पइज्ज महारी एम भणेवि भिडिउ पंचालहणं दुप्पवणु महा-धण-जालहं ८ धत्ता तो पट्टविय महाशाइ-तोएण थरहरंत. गाराय-सय । एक्केक-णरिद-पहाणा दुमय-सेषण.दस. सहस हय ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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