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छप्पण्णमो संधि
जल-भरिउ कलसु वासवेण किउ जुअणासहो अग्गए सण्णिमिउ तासु-वि तं तोउ पियंताहो उप्पण्णु गब्भु कंदताहो ४ फोडाविउ जढरु पुरंदरेण पुकारिउ वाले सुंदरेण जणु भासइ वासइ काई किर मं धासइ णिग्गय सक्क-गिर मंधाउ णामु तहो तेण किउ सुरवइ-अंगुट्टए अमिउ थिउ तं पावेवि पावेवि वडूढविउ बारहमए दिवसे रज्जे ठविउ
घत्ता जसु सामण्णु विढत्तउ चोरार-मारि-पश्चित्तउ । पालिउ जो सुर-पालेण कंदंतु सो-त्रि गिउ कालेग ।।
[१३] कालेण दिलीवि गवेसियउ आहेडलु जेण विसेसियउ सुर-गायण जसु गायति सरे पेक्खणयहं तेरह सहस घरे कालेण भईरहि खयहो जिउ जण्हविहे जणणु जो जणेण किउ कालेण जयाइ-वि कड् ढेयउ सहसक्खहो जो समवढयउ ४ दस-वरिस-सयई णिय-णंदणहो जर देवि पुरुहे 'पुर-मद्दणहो किउ रज्जु जुवाणे होतएण इंदहो अद्धामणे ठंत एण कालेण मिलिउ गिवाण-णिहु बइणहो गंदणु णामेण (पहु जो सुरहिए-वि अन्मत्थियउ जिह बत्तहो तिय करि पत्थियउ ८
घत्ता लइउ तेण वाणासणु दइ वसुमइ करि पेमणु । ताए-वि सिरेण पडिच्छिउ दुहियत्तणु अवरु समिच्छिउ ॥ ९
तिह अंबरीसु ससिविंदु णउ तिह भरहु तेम अवर वि बहुय तहिं काले जुट्ठिलु उपसमिउ
[१४] तिह परिमरामु हरि रामु गउ के कज्जे शेयहि धम्म-सुय आवासहो कह-वि कह-वि गमिउ
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