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________________ रिटणेमिचरिउ भीमहो हय हय संतणु-तोए घोसिउ कलयलु कउरव-लोएं सत्ति विओयरेण परिपेसिय स-वि सुर-सरि-सुरण णीसेसिय लइय लउडि हरि-पीउसि-सेए सारहि णिहउ ताम सइणेए घत्ता भीमु-वि भिडिउ कलिंग-वले धट्ठज्जुणहो महारहे थाएवि । अइ-भुक्खालुउ काल जिह करि खायणहं लग्गु जगु खाएवि ॥ ८ [१९] पस्वल खति जाम दप्पु त्तण सच्चइ-भीगसेण-घट्टज्जुण तहि अवसरे रण-रहसे ण माइय आसत्था म-सल्ल-किव धाइय तिष्णि-वि तिहि-मि पडिच्छिय एंता अविरलु सरवर-साइड देता तावेत्तहे-वि अणिहिय-तोणहो घाइउ दोवइ-गंदणु दोणहो ४ तो सुर-समहं अमाणुस-जोणिहिँ जाउ जुझु धट्ठज्जुण-दोणिहिं वहि-मि परोप्परु छाइउ वाणहि विण्णि-वि पोमाइय णिवाणेहि तहिं अवसरे अहिवण्णु पराइउ विज्जउ णाई धणजउ आइड तिण्णि-वि लक्ष्य तेग णारारहिं रुप्पिय गुंखेहि कंचण-काएहिं ८ धत्ता सिणि-सुय पिहि-सुय-दुमय-सुय तिाण-वि रणउहे रक्खिय वाले । किव-मद्दाहिव-गुरु-तणय तिण्णि-वि कवल-कलिय णं कालें ॥ ९, [२०) लाइय पंचतीस सर सल्लहो किंवहो दुवारहो अणिहय-मल्लहो दस वच्छत्थले आसत्थामहो धाइउ ताम पुत्त महि कामहो भिडिय वे-वि परिवाहिय-संदण णर-णंदण-दुजोहण-गंदण लक्खणेण णव वाण विसज्जिय पंचासेहिं गर-सुरण परज्जिय ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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