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________________ रिटणेमिचरिउ धत्ता एयारह-अक्खोहणिहि अज्जु कल्ले कुरुवइ-वि मिलेसइ । णाहु महारउ गरुडु जिह जायव-पण्णय-कुलई गिलेसइ ।। [११] ८ जइ तुम्हहु ण कारणु संगरेण तो एंव वुत्त परमेसरेण पट्टकहो पर पण्णत्ति-विज्ज गय जलयरु रुपिणि णाय-सेज्ज सारंगु सरासणु सहु सरेहि वारवइ लएवी कुरु-णरेहि तो दुग्जय दुद्धर दुण्णिवार हणु हणु भणत उट्ठिय कुमार णं हरि-किसोर गय-गंध-लुद्ध सयमेव संव-मयणाणिरुद्ध अंकूर-विज्जरह-चारजेट्ट गय-दुंदुहि अवर-वि अमर-जेट्ठ उट्ठवणु करत दसारुहेहि कह-कह-व णिवारिय तुरिउ तेहि जिह दूउ ते व वोल्लेवउं जे संकमओ उअरि वरि णिउंजे(?) धत्ता तो वलएवं पट्टविउ जाहि दूय कहि णियय-गरिंदहो। सुह, जीवहिं सामंतु जिह अपेवि चक्क-रयणु गोविंदहो ॥ [१२] गउ दूउ पयाणउं देवि तेथु वर चार-चक्खु चक्कवइ जेत्थु पणवेवि पाय पत्थिवहो वत्त करि वइरिहिं उप्परि विजय-जत्त ण गणेइ तुहार सउरि वयणु । पच्चेलिउ मग्गइ चक्क-रयणु तहिं अत्थ-घराघर-घरण-धीर एकेक-पहाण-महा-पवीर तहि पंडव-दुमय-विराड-राय सत्तक्स्खोहिणि-साहण-सहाय . तहिं मिलिय तुहारा पुत्त वे-वि जय-विजय वलक्खोहिणिय लेवि तहिं कइकय-चेइ-स-चेइयाण वसुएवहो गंदण अप्पमाण तहिं सच्चइ-वल-केसव-सतोय जउ-जायव-अंधकविट्ठि-भोय ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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