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________________ रिट्ठणेमिचरिङ ८ गयणंगणु छाइउ जाय णिसि दीसइ ण दिवायरु ण-विय दिसि ण धणंजउ ण धणु ण सर-णियरु ण जणद्दणु सिग्गिरि-चक्क-धरु तो लइउ चक्कु गरुडासणेण जं खंडवे दिण्णु हुवासणेण घत्ता तं करयले धरेवि दारावइ-पुर-परिपाले । जोइस-चक्कु जिह परिभमइ भमाडिउ काले ॥ ९ किउ करयले चक्कु जणद्दणेण गय भीमें धणु सिणि-णंदणेण अवरेहि-मि अवरई पहरणाई दुव्वार-महारिउ-वारणाई केसवेण दुत्तु गंडीव-धरु जइ धरेवि ण सक्कहि समरु-भरु तो ओसरु ओसरु संदणहो हउं भिडमि महा-णइ-गंदणहो असिवरेण वियारमि वच्छयलु। दस-दिसहि विहजमि कुरुव-वलु विण्णासमि विक्कमु अप्पणउं फेडमि जम्मही जगे जंपणउं गंगेय-दिवायरु अत्थमउ णारायण-चक्क-तिमिरु भमउ विण्णवइ विओयरु पणय-सिरु आएसु भडारा अस्थि चिरु घत्ता हम्मइ देव रणे एहु अट्ठमए दिणे गउ पई णउ मई. णउ पत्थे । सई मरइ सिहंडिहे हत्थें ॥ [१०] गंगेएं पभणिउ महुमहणु जरसंघहो कुरुवइ आणकर वड्डारउ अंतरु सुर-गरह जइ तुहुँ जिउ तो मई लदु जउ पडि-किंकरेण सहूं कवणु रणु . . हडं तासु पियामहु भिच्चयरु समसीसी का महु किंकरहं .. जइ हउं जिउ तो वहु अयसु तउ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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