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चालीसमो संधि
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जिद्दलइ रहंगई रहिय-रह विद्दवइ महा-तुरंग-णिवह . . . . . . छिंदइ धय-चिंधइ चामरई सीसक्कई कवयई धणुहरई लहु करयलु खणु-विण वीसमइ णं पर-वले मइयवट्ठ भमइ एक्कु जे एक्कउहु एक्क-रहु परिसक्कइ णं कयंत-णिवहु
धत्ता संकिय णिएवि रिउ तं पलय-भूय-अणुरूवउ । कहिं गइ कहो सरणु जगु सव्वु पियामहिभूयउ ॥ ९
[७] तो दुद्दम दणु-तणु-घायणेण वोल्लाविउ णरु णारायणेण अहो अज्जुण अज्जुण संदणहो आभिटु महा-णइ-णंदणहो एहु केण धरिज्जइ पलय-रवि पई मेल्लेवि अवरु समत्थु ण-वि तो विप्फारिय-गंडीव-धणु उत्थरिउ णाई णहे पलय-घणु . ४ गंगेय-धणंजय अभिडिय णं इंद-पडिंद समावडिय णं गोविय अमरिस-भोव-गय णं सुर-दुग्धोड पलोट्ट-मय णं सीह ललाविय-जीह-मुह णं सरहसु उद्बुसियंगरुह कइ-ताल-महा-धय वे-वि जण णिय-सामिहे वसुमइ देण-मण
घत्ता पत्थे तिहिं सरेहि पलयग्गि-समप्पह-तेयहो। कुरुवइ-हियउ जिह धणु पाडिउ तहो गंगेयहो ॥ ९
[८] . घणु.खंडणे मुअण-भयावहेण : पोमाइउ पुत्तु पिघामहेण पई मुरवि चित्ते कहो आरहडि विण्णाणु विढत्तणु चारहडि ........... घणु अवरु लेवि सर पट्टविय । जउहिट्ठिल-वले वहु णिविय ........ हय गय णर णरवइ पवर-रह धय-छत्त-दंड-चामर-णिवह
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