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चउतालीसमो संधि
पडु-पडह-रवाई किय-कलयलई स-वाहणइं । आभिट्टइं वे-वि तव-सुय-कुरुवइ-साहणई ॥
१
सेणिएण पपुच्छिउ परम-गुरु जे दड्दु जम्म-जर-मरण-पुरु गउ एम देव छठ्ठउ दिवसु अत्यइरिहे मत्थए थिउ विवसु सत्तमए दिवसे कहे केम कहिं को कासु भिडेसइ समर-मुहि अक्खइ गणहरु जं जेम थिउ गंगेएं मंडल-बूहु किउ . एत्तहे पवलेण वल्लुत्तण किउ कञ्अ-वूहु धज्जुणेण अरुणुगमे रहसुद्धाइयई णिविसे कुरुखेत्त पराइयइ हय वज्जई वढिय-कलयलई आभिट्टई विण्णि-वि कुरु-वला रउ उहिउ सेण्णई अक्कमइ पुणु पहरणग्गि पुणु रुहिर-णइ
८
धत्ता
मइलियई रएण दट्टई हेइ-दवाणलेण । हविउ व्हाइयई पच्छए रुहिर-महाजलेण ॥
[२]
तहिं काले परोप्परु कर-कमई विधइ विराडु तिहिं सायएहिं
आभिट्ट दोण-मच्छाहिवइ दीहर-फर्णिद-दीहायरहिं
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