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सत्ततीसमो संधि
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[१०]
दुवई
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सत्तुत्तमेण सत्तिया झत्ति घत्तिया घाइया वलंती ।
णं लल्लक्क-त्रयणिया पलय-रयणिया णहयलं गसंती ॥ सारहि भणइ भडारा जायव चक्कणेमि कुल-वल्लरि-पायव एह सत्ति वइरोयण-केरी णं जम-जीह जुयंत-जणेरी जाम ण पावइ ताम पयत्तें हणु कुलिसेण पुरंदर-दत्ते तेण समाहय कलयलु घुट्ठउ किउ सत्तु तमु पाराउट्ठउ तावण्णेण रहेण धणुद्धरु घाइउ कुडिण-पुर-परमेसरु सरु पट्टविउ समीरण-वेरं सत्तहिं णवर छिण्णु सइवेएं दस धगुहरइ वियब्भ-गरिंदहो णं सिंगई पाडियई गिरिंदहो
घत्ता तेण-वि रणमुहे केउवेरी मुक्क महा-गय । दुक्कुल-वहुय-व पइ-हत्थु वलेप्पिणु णिग्गय ॥
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[११]
दुवई स-वि अग्गेय-बाणेण जायवाणेणं चडचडंति दड्ढा ।
णं गुण-धम्म-मुक्केणं लोह-दुक्केणं का-वि दुब्बियड्ढा ॥ तहिं अवसरे जगु जिणेवि समत्थई वइरोयण-माहिंदई अत्थई भोययडाहिवेण रणे मुक्कई वेण्णि णाई जम-करणई दुक्कई छिण्णई जायवेण विहिं वाणेहिं भीम-भुयंगाहोय-समाणेहिं रह-कोवंड-कवय-धणु-छत्तई पंच-वि पंचहिं सरेहि विहत्तई अवरें हउ णिडाले णाराएं करि-व वियारिउ अंकुस-धाएं पडिउ घुलेप्पिणु मुच्छा-धारें णिउ णिय रहवरेण जुत्तारें धाइउ वेणु-दारि पडिवारउ जगहो विरुद्ध णाई अंगारउ ८ तेण समाणु अणेय णरेसर
जायव मागह भिडिय समच्छर
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