________________
४८
रिटणेमिचरिउ
धत्ता
ताम धणंजउ जालंधर-साहणु चूरइ । सिवह विहगह णिसियरह मणोरह पूरइ ।।
[१२]
दुवई णर-णाराय-पूरिया गिरि-व चूरिया कुंजरा णिवण्णा ।
णं खय-मायाहया णव-वलाहया महियलं पवण्णा ।। कत्थइ णर-सरेहिं करि कप्पिय मलय-सिहर णं अहिहिं वियप्पिय कत्थइ जीविएण गय मेल्लिय रण-देवयहे णाई वलि धल्लिय कत्थइ हत्थि हत्थ णिय वाणेहि वम्मीयाहि-व खगेहि पहाणेहिं कत्थइ दंति-दंत सर-छिण्णा केयइ-हत्था णाई विखिण्णा कत्थइ रहवर णर-सर-खंडिय दइवें गिरि-व गणेप्पिणु छंडिय कत्थइ कंचण-चक्कई जडियई रण-बहु वहु-कुंडलई-व पडियइं कत्थइ लुय-दंडई सिय-छत्तई णं जम-जेवण-रुप्पिय-पत्तई
४
घत्ता
कत्थइ पत्थेण महि मंडिय णर-तरु-जालेहिं । वाहा-साहहिं गह-कुसुमेहिं पाणि-पवालेहिं ।।
[१३]
दुवई ताम हिरण्णणाहेणं रह-सणाहेणं धवल-धयवडेणं ।
अण्णाविट्ठि कोक्किओ अहि-व रोक्किओ भुय-वलुब्भडेणं ॥ जायव थाहि थाहि कहिँ गम्मइ अज्जु परोप्पर सरहिं णिहम्मइ हउ-मि तुहु-मि विण्णि-वि सेणावइ विहि-मि गाउ सुर-भवणे णावइ विण्णि-वि सुद्ध-वंस सहवासिय जिंव सुरह जिंव मगह-णिवासिय
४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org