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सत्ततीसमो संधि
जिम मई पिहिवि दिण्ण जरसिंघहो जिम पई देवइ-सुयहो मयंधहो विष्णि-वि करहो अज्जु एक्कंतर मुए मुए सरवर-बरिसु णिरंतर पभणइ अण्णाविट्ठि अणाउलु तुहुँ रोहिणिहे भाइ वल-माउलु रुहिरहो पुत्तु सालु वसुएवहो समर-सएहि वढिय-अवलेबहो रेवइ-जणणु भणेवि मुहु वंकमि णं तो कवणु जासु आसंकमि
धत्ता सउरि मुएप्पिणु पई पेसणु किउ जरसंघहो । जिह तालप्फलु सिरु जासु खुडेवउ खंघहो ।।
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तो अमरिस-सणाहेणं हेमणाहेणं सत्तवीस वाणा ।
सेणावइहे पेसिया खर-सिला-सिया सविस-फणि-समाणा ॥ तो तहिं अण्णाविट्ठि कुमारे सीहेण-वि वण-विक्कम-सारें धरणिधरेण धराधर-धीरे मयरहरेण-व अइ-गंभीरें दिवसयरेण-व दूसह-तेएं छिण्णई ते सर सरेहिं सइवेएं ४ रुहिरहो णंदणेण पडिवारा सत्तरि सरह विमुक्क खय-कारा ते-वि तिक्ख-णाराएहिं णिज्जिय मुहिरंगरुहें णवइ विसज्जिय वाण-सएण छिण्ण जउ-वीरें दस सय अवर करे किय धीरें तेहिं असेसु दियंतर छाइउ सलह-वंदु जिह कहि-मि ण माइउ ८ रोहिणि-भायरेण धउ पाडिउ वइरिहे णाई मडप्फरु साडिउ
घत्ता
जायव-वीरेण हरि रहु सारहि
सण्णाहु छत्तु घउ घणुहरु । सत्त-वि कियाई सय-सक्कर ॥
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