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तो पत्थो वियसि मुह-कमलु किं राहावेहु ण दिठु पई रक्खंतु महा-रह अट्ठ-रह रक्खंतु देव दाणव गह- वि रक्खंतु गरुड-गंधव्त्र - गण रक्खंतु रुद्द रकखंतु वसु रकख सहसक्खु तियकख - समु रक्खउ वइसाणरु वइसवणु
परिरक्ख करेहि मारे कल्ले मई
तो सयल - भुवण - जाणिय-गुण हो पडिवणें तर्हि संतोस भरे सिव - कंदणु सुक्कासणि-वडणु चिचयई कवंधई गयणयले अइ-बिरुवई रुव विहंगमहं चिताविय सुरवर सयल मणे उद्धसिउ धजउ जाउ दिहि नारायण-पवणालंखियउ
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णिव्वणहि केत्ति कुरुव-बलु बंदि-गह- गो-हे तुलिउ मई लइरह (?) रक्खंतु समत्त रह रक्खंतु दिवायर वारह-वि रक्खंतु महा-रिसि सत्त जण रख रक्खेव सचि जसु रक्खड कॉल - कालु कथंतु जमु रक्खउ रवि राहु-वि पवणु घगु
घत्ता
सहुं तइलोके तुहु-मि हरि | समरंगणे तो-वि अरि ॥
रिट्टणेमिचरिउ
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परितुट्ठ जणद्दणु अज्जुणहो उपाय जाय - कउरवहं घरे मयरहरखोहु महिहर-चलणु ओवुट्ठई रुहरई वरणियले पुच्छई जलियाई तुरंगमहं को जाणइ होसइ काई रणे पज्जलउ महारउ कोव - सिहि वरवइरिघण-संधुक्कियउ
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घत्ता
हरि - जुए हरि - चिंधे सई भुत्र-वल-हीणु
हरि-वलु करे गंडीउ जहिं । जाइ जयद्दहु संदु कहिं ॥
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इय रिट्ठणेभिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव- कए सत्तावण्णमो इमो सग्गो ।
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