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सत्तावण्णमो संधि
तो भणइ दोणु करि चारहांड अजरामरु को-वि ण एत्थु जए ण पलायणु सोहइ खन्तियहं जिम सामिहे जिम सरणाइयहो जीवग्गह-जय-मरणेहि भडहो जय-लच्छि जएण समावडइ छ महारह सूई-चूहे जहिं कल्लए पयंगु जामत्थमइ
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अवलंबहि वित्ति समारहडि तो वरि पहरिउ संगर-समए सिरु उज्झइ कारणे एत्तियह जिम मित्तहो जिम अण्णाइयहो ४ तिहिं गइहिं सुद्धि जस-लेहडहो माणेण सुरंगण करे चडइ पइं रक्खमि को पइसरइ तहिं महि अम्महं ताह-मि सग्ग-गइ ८
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घत्ता तो सिंधव-णाहु चित्तु पडिस्थिर करेवि थिउ । जिम मारिउ पत्थु जिम ते महु सिर-छेउ किउ ॥
[१३] जं किय परिरक्ख जयबहहो तं चरेहि णिवेइउ महमहहो हरि होसइ-जणवए जंपणउं किय पत्थु डहेसइ अध्पणउं णउ पइजारहणहो !णबहणु को सक्कइ पइसेवि गुरु-गहणु जहिं दोणि दोगु किउ कण्णु सलु मदाहिउ भूरीस उ पवलु जहिं चित्तसेणु विससेणु सहुं दूसासणु दुम्महु दुविसहु दुजोहणु सउणि विगष्णु जहिं भणु वहरि णिहण्णइ केम तहिं मुहु कण्हें णरहो णियच्छियउ चर-चरिउ एउ परियच्छियउ पई पत्थ कियई अइ-वोल्लियई सुरवरह-मि चित्तई डोल्लियइं
घत्ता असि-जाला-मालहो धय-धूमहो रिउ-हुयवहहो । पइसेप्पिणु तेत्थु को सिरु खुडइ जयदहहो ॥
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