________________
अट्ठावण्णमो संधि
भणइ धणंजउ पणय-सिरु पुण्णिम-इंदु-रुंद-मुहर्षदहे। . दुक्ख-दवाणलु उल्हवहि जाहि जणद्दण भवणु सुहहहे ॥१
[१] कोइल-कल-कोलाहल-सदहे काई भडारा जियइ सुहदहे पुत्त-विओय-सोय-तम-छाइय कि जीवइ कि मुइय वराइय जाहि गवेसहि देव जणदण। कालिय-देह-दमण दणु-महण एम भणेजहि णियय-सहोयरि लइ सुय-सोउ पमोयहि सुंदरि ४ केत्तिउ रुवहि खणंतरु सुप्पइ पडिउ धुरंधरु को धुरे जुप्पइ सव्वहो जीवहो जम्मणु मरण धम्मु मुएविणु को वि ण सरणउ तो वरि अप्प-हियत्तणु किज्जइ वउ चारित्तु सीलु पालिज्जइ वंघव-सयण सव्व जीवंतहं पच्छए को-वि ण जाइ मरंतह ८
घत्ता हउ-मि कुमारहो लग्गु कुढे जिम सिरु खुडिउ जियंते जयरहे। जिम कल्लए ओयारियई महुसूयण कंकणई सुहहहे ॥ ९
[२] अण्णु-वि सुहड मडप्फर-साडहो एम देव भणु दुहिय विराडहो उत्तरे तालुय-वम्म-वियारउ थिउ रण-दिक्खहे ससुरु तुहारउ जइ समरंगणे ण हउ जयबहु जइ ण समत्तु समाणित भारहु जइ तव-सुएण ण भुत्त जियंते तो पडिवण्णु सुहहहे कंते ४
रि-२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org