________________
सहिमो संधि
रहवरे चडियउ वूहई फोडेवि
सुय-वह-वेहाइद्धउ । मंड पइछु कइद्धउ ॥१
[१]
(हेला) गय-घड-सुहड-संकडे णिविड-भड-समूहे ।
रक्खिउ जं जयदहो थवेवि सूई-चूहे ॥ तं स-धणु धणंजउ भणइ एवं जइ वइरि ण मारमि अज्जु देव जई फोडोंहेडि(?) ण करमि वूहु पंचाणणु जिम वणे हरिण-ज्हु जइ सरेहिं ण सीरमि कुरुव-लोउ तो अण्णु ण लेमि ण पियर्याम तोउ ४. गंडीउ ण धमि ण करमि जुज्झु जइ भाम ण दोणु ण णवमि तुज्झु पइसरभि जलंतए जलण-जाले अहवइ पेक्खेमहि तहिं जे काले हरि वोल्लइ मं वोल्लहि अ-भव्वु किं कउरव -साणु संदु सव्वु जहिं गुरु जस-धवलिय-सयल-खोणि किउ कण्णु विकण्णु कलिंगु दोणि ८. दूसासणु सउणि सयाउ सल्लु जहिं गुरु-सुय भूरि-भडेक्क-मल्लु
घत्ता तिण्णि-वि वूहई भिदेवि जाम ण गम्मइ । ताम जयबहु अज्जुण केम णिहम्मइ ॥ १०
[२]
(हेला)
खंडव-डाह-डामरो पंडवो पलित्तो । णं जुय-खय-दवाणलो पलय-पवण-छित्तो ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org