________________
१३६
रिट्ठणेमिचरिउ
८
उच्छउ परिवड्ढिउ कउरवाहं गंगेउ पसंसिउ विजउ घुछु कुरु-णाहु सढत्तीभूउ (?) सुट्ठ
धत्ता लइ एवहि अम्हह सिद्ध महि चितिउ रण-रहसुद्धएहि । कुरुवइ.धरे तुरई तूरिएहि अप्फालियई सई भुएहिं ॥
९.
इय रिडणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए छायालीसमो संधि-परिच्छेओ समत्तो।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org