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सत्तचालीसमो संधि
जो पलय-हेउ उप्पण्णउ सो पेक्खंतहो महुमहहो । जिह केसरि मत्त गइंदहो भिडिउ सिहंडि पियामहो ॥ १
[१] तो पंडवेहि मंतु मंतिज्जइ सरि-सुउ केम देव जोहिज्जइ णव वासर सम्भावे जुझिउ जिह सायरहो पमाणु ण वुझिउ वे-वि मच्छ-पंचाल-वरेण्णई भग्गई सोमय-सिंजय-सेण्णइं भणइ जणद्दणु अक्सर सारमि दइ आएसु महाहवे पहरमि ४ अच्छउ भीम पत्थु सहुँ जमलेहि अचमि रण-महि गर-सिर-कमलेहि सहुँ गंगेएं सहु जरसंधे मारमि कुरुव सव णिविसद्धे अह जुज्जणहं ण देहि णराहिव तो करि वयणु महारउ पत्थिव गम्मउ तासु पासु सरि-पुत्तहो भइ तर्हि जे सव्वु जं चिंतहो ८
धत्ता केवलिहि आसि जं. भासियउं तं सो हियए समुन्वहइ । छुडु पुच्छहो चरण णवेप्पिणु . . तुम्हहं गिरवसेसु कहइ ॥ ९
। [२] हरिउवएसें दूसह-तेयहो पंडव मंदिर गय गंगेयहो चरणु णवेप्पिणु पझणइ-राणउ सप्पु व दंडाहउ बिदाणउ
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