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________________ १३८ रिट्ठणेमिचरिउ अहो कोमार-महावय-धारा विस-ज ठहर-केसग्गह-जूवई तेरह वरिसइ समए वद्धा पई अ-पसण्णएण परमेसर जो तुहु दिवे दिवे जय-कारेश्वर भणइ पियामहु णीसंदेहे अम्हण किय परत्ति भडारा सवइ विहिवसेण अणुहूबई मग्गिय पंच गाम णउ लद्धा अम्हहुं वणु पडिवउ ण वसुधर सो समर गणे किह पहरेव्वउ कल्लए करमि चयारि सणेहे ८ घत्ता णिय-हियउं परम-जिणिदहो णिरुवम-गुण-गण-मंडियहो । कुरुवहं सीसु महि तुम्हहुँ जीविउ देमि सिहंडियहो ॥ ९ [३] एवं भणेवि पेसिय गंगेएं गय पंडव उवलढें भेए ताम सिहंडि तेन्थु गलगज्जइ णं जम-पडहु भयंकर वज्जइ अच्छउ धम्म-पुत्तु स-विओयरु अच्छउ सव्वसाइ दामोयरु अच्छउ मच्छु दुमउ घट्टज्जुणु अच्छउ हलहरु सच्चइ पज्जुणु ४ हउं जि पहुच्चमि तहो गंगेयहो गह-कल्लोलु जेम रवि-तेयहो .. सीह-किसोरु जेम मयंगहो जेम स्वगाहिउ पवर-भुयंगहो पइसइ जइ-वि सरणु वंभाणहो जइ-वि सुरिंदहो अमर-समाणहो मरइ तो-वि महु परइ पियामहु जइ ण सिद्ध तो पइसमि हुयवहु ८ . घत्ता तहिं अवसरे भणइ धणंजउ , पहु ण देंति जे संदणहो । ते मारमि हउँ एक्कलउ छुडु भिडु तुहुं णइ-णंदणहो ॥९ लइ लइ दिव्व वाण महु केरा राहा-वेहु जेहि परियारिउ जे संगाम-काले पर-पेरा खंडवे जेहिं हुवासणु वारिउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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