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छायालीसमो संधि
घत्ता जं जं गइ-णंदणु करे धरइ तं तं अज्जुगु हणइ धणु । लग्गेप्पिणु फग्गुण माहवहं कवणु ण पलयहो जाइ वणु ॥ ९
[१८] णिम्मज्जइ धणु-गुण-सर-सयाहं ण-वि सरि-सुय सूयह ण-वि हयाह पेक्खेप्पिणु अज्जुणु मंद-इच्छु सयमेव पधाइउ लच्छि-वच्छु लइ हणेवि ण सक्कहि तुहुं णिरुत्तु हउं अप्पुणु मारमि गंग-पुत्तु भुयदंड करेप्पिणु पहरणाई कररह-मुह-धारा-धारणाई गइ-णदणु पभणइ एहि एहि लइ लइ णारायण घाय देहि हेवाइउ अवरेहिं दाणवेहिं को करइ केलि सहुँ माणवेहिं जिह तुहुं तिह घाइउ परसुरामु परियाणिउ मई तहो तणउ थामु करे धरेवि धणंजउ भणइ एम मज्झत्थें भावे अच्छु देव
धत्ता अट्ठारह दिवसई महुमहण पई होएवउ पेक्वएण । मारिज्जहि पुणु जरसंधु रणे पंडव-कुरुव-कुल-क्खएण ॥
कह-कह-व णियत्तिउ हरि णरेण लंवाविउ विवु दिवायरेण गंगेउ परिट्ठिउ दुण्णिरिक्खु णं खय-रवि-तवियंतरिउ रिक्खु रण-रंगे इय सर-मंडवेहि जोयणह-मि जाइ ण पंडवेहि तहिं काले वियंभिउ तिमिर-णियरु जोयारहं फेडिउ चक्खु-पसरु पल्लट्टइ विण्णि.वि साहणाई रुहिरोल्लिय-सल्लिय-वाहणाई ओहावण पत्थ-विओयराह तव-तणय-जमल-दामोयराह
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