SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० रिट्टणेमिचरिउ जेत्तहे णासइ तेतहे हम्इ असि-पत्त-वणु पत्तु पामिकाउ पुणु वइतरण पइट्छ तिपाइउ सामरि-तरुवा अवरुंडाबिउ जगु जे पलित्तउ केत्तहे गम्मइ ४ तहि-मि पडतेहि पत्तेहिं छिण्णन तित्थु-वि तंवा-कलयलु पाविउ एम महंती आवइ पाविउ घत्तो तं तेत्तिउ दुक्खु सहे टिपणु एवहिं कायरु काई तुहुँ । णिय-कर-पल्लवे लग्गउ लेवि | सक्कहि परम-सुहु ॥ ९ [१७] गुरु-वयणेहिं साहु उवसंतर थिउ मज्झत्थु होवि दमवंतर जीविय-मरणाउह-सिरिखंड अरि-सुहि-धूलि-धण्ण-विस-खंडई तिण-कंचणइ कच्च-माणिक्का ओयई अबरई सम्बई एक्का सव्व खमंतु जीव महु भायहो मई मि मिउ छज्जोव-निकायहो ४ विसय णिवारिय इंदिय-गामहो इदिय ढोइय सासय-थामहो एक्कोभावु करेप्पिणु सव्वहं दिन्नु चित्त आलंबण-दहं आलंवणइ-भि होंति अणेयई तिहुयणु भरेवि थियई अ-पमेयई घत्ता जं वलु सो भाउ हणेत्रउ णिक्कंपु झाणु झाएवढं माणुपेक्खु जिव-चिंतणउं । सासणु एहु जिणहो तण ॥ ९ _[१८] जिणु एक्कग्ग-चित्त झायंतहो सोवकरणु सावय-वउ लेतहो लेसउ तिणि होति परिणामें तेइय-पउमिय सुक्किल णामें भावण-वितर-जोइस-धामेहि होइ अणि?-तेय तिहिं थामेहिं मज्झिम सउहम्मी साणिं देहि उत्तम सणकुमार-माहिं देहिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy