SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एष्णपण्णासमो संधि १७१ तेत्थु जे सत्ताह पच्छडबग्गेहि पउम कणि?-मज्ज्ञ-छहिं सग्गेहि उत्तम -विहि-सयार सहसारेहि सुकाहम तेहिं जे सुह-सारेहि तेरह-चउदहेहि मज्झुनम होति अ-लेस सिद्ध लोगुत्तम पाण मुअइ जो जेहिं सिलेसेहि' सो उपज्जइ तेहि जि देसेहि ८ घत्ता चउविह-आराहण-रुक्खहो लग्गइ गंगाणंदण एयई त्रिविह-रसई सुह-परिमलइ । सग्ग-मोक्ख-सोक्ख फलइ ॥९ [१९] तेरह पगरणाइं पढमुत्तइ आयइ सत्तवीस एणु सुत्ताई कहियइ अमर-तरंगिणि-गंदण संघ-खमावण अणु सिक्खावण पर-गण-चरिय-खेत्त-परिमग्गण। सुत्थिय-परमायरिओलग्गण उव संपय-परिक्ख-पडिलेहण आउच्छा-पडिपुच्छालोयण दोसक्खावणु सई संथारउ णिज्जावउ भव-भय-खय-गारउ हाणि-पगासण पचक्खोवण खमण खमावण पडिसिक्खोवण सरणु कवउ सम्मत्तण झाणउं लेस महाफलु सव्वु पहाणउं घत्ता आयई चालीस-वि सुत्ताइ पढइ सुणइ जो सद्दह्इ । सो दुक्सहं मुहु ण णिहालइ धुउ अजरामर-पउ लहइ ॥ ८ [२०] भणइ पियामहु अहो वय-धारा तुम्हह कहि उप्पत्ति भडारा हूंस-महारिसि कह्इ अणंतरु चारु चिराणउणियय-भवंतरु अम्हई वे-वि हंस चिरु गंगहि घाइय केण-वि कारणे अंगहि तहि गय जहिं महिसि तरु-कोडरे णिवडिय घुम्ममाण चलणंतरे ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy