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एष्णपण्णासमो संधि
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तेत्थु जे सत्ताह पच्छडबग्गेहि पउम कणि?-मज्ज्ञ-छहिं सग्गेहि उत्तम -विहि-सयार सहसारेहि सुकाहम तेहिं जे सुह-सारेहि तेरह-चउदहेहि मज्झुनम होति अ-लेस सिद्ध लोगुत्तम पाण मुअइ जो जेहिं सिलेसेहि' सो उपज्जइ तेहि जि देसेहि ८
घत्ता
चउविह-आराहण-रुक्खहो लग्गइ गंगाणंदण एयई
त्रिविह-रसई सुह-परिमलइ । सग्ग-मोक्ख-सोक्ख फलइ ॥९
[१९] तेरह पगरणाइं पढमुत्तइ आयइ सत्तवीस एणु सुत्ताई कहियइ अमर-तरंगिणि-गंदण संघ-खमावण अणु सिक्खावण पर-गण-चरिय-खेत्त-परिमग्गण। सुत्थिय-परमायरिओलग्गण उव संपय-परिक्ख-पडिलेहण आउच्छा-पडिपुच्छालोयण दोसक्खावणु सई संथारउ णिज्जावउ भव-भय-खय-गारउ हाणि-पगासण पचक्खोवण खमण खमावण पडिसिक्खोवण सरणु कवउ सम्मत्तण झाणउं लेस महाफलु सव्वु पहाणउं
घत्ता
आयई चालीस-वि सुत्ताइ पढइ सुणइ जो सद्दह्इ । सो दुक्सहं मुहु ण णिहालइ धुउ अजरामर-पउ लहइ ॥
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[२०]
भणइ पियामहु अहो वय-धारा तुम्हह कहि उप्पत्ति भडारा हूंस-महारिसि कह्इ अणंतरु चारु चिराणउणियय-भवंतरु अम्हई वे-वि हंस चिरु गंगहि घाइय केण-वि कारणे अंगहि तहि गय जहिं महिसि तरु-कोडरे णिवडिय घुम्ममाण चलणंतरे
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