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________________ रिट्टणेमिचरिड भणइ सिहंडि पियामयहो णवमए दिवसे णिसा-गमणे घत्ता जइ ण ठवमि सरीरु सर-संथरे । तो हउ झप देमि वइसाणरे ।। ९ ।। करेवि पइज्ज परिट्ठिउ राणउ कहि सहएव केम महिं जिज्जइ तेण णवेप्पिणु कहिउ गरिंदहो पटु णिवंधु देव घट्ट जुणे किउ अहिंसेउ समप्पिउ रण-भरु कुरुवेहि अवरु वृहु विरइज्जइ किय-कलयलई समाहय-तूरई जुज्झण-मणई अणिट्ठिय-तिट्टई पुच्छिउ मदि-पुत्तु बहु-जाणउ एवहिं को सेणावइ किज्जइ कउरव-करि-कप्परण-मइंदहो खयहो जंतु कुरु कुद्धए अज्जुणे ४ कोंच-बूहु णिम्मविउ भयंकर रयणिहे विरमि पयाणउ दिज्जइ उब्भिय-धयइ पडिच्छिय-सूरई सामरिसई रण-भूमि परिट्टई ८ घत्ता अविरल-सर-धारा-हरई पाउसे णव-घणउलइजिह हय-पडु-पडह-विजय-रव-भरियइ। पंडव-कुरुव-वलई उत्थरियइ ॥ १ । [४] कार ४ हरि-खुर-खुण्ण-खोणि-रउ उट्ठिउ घरहु तुरंगम रह ओसारहो जइ महु तणिय वसुधर चप्पहो हउ कुलीणु हउं सव्वहं सामिउ वलि-णल-णहुस-दसाणण-राणा ओए-वि अवर-वि जे जे जुज्झिय को तव-सुउ को किर दुज्जोहणु वरि अवहेरि करेवि पल्लटहो णाई णिवारउ मज्झे परिट्ठिउ करि अकुसहो णराहिव धारहो तो अच्छहिं पाणेहिं समप्पहो जइ वट्टिउ तो केणायामिउ सिवि-दिलीव-मंधाय पहाणा ताहं ताहं मई विक्कम वुझिय वसुमइ कासु कवणु आओहणु णंतो महु सयल-वि आवट्टहो ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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