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छत्तीसमो संधि
धत्ता घरणिहे असणि-वियारियहे कह-कह-वि जाइं णिव्वडियई । खंडई उत्तर-दाहिण णं दइवें एकहिं घङियई॥
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तहिं ताव तुरय-खर-खुर-दलिउ रह-रहसें रण-रउ उच्छलिउ खम-रहिउ को ण अमरिस-चडिउ मं जुज्झहो णं पाएहिं पडिउ लग्गइ व कडच्छए उरसि करे वजरइ व भडहं कण्ण-विवरे ओसरहो करहो किं चप्पणउ विद्दवहो अकारणे अप्पणउ केत्तिउ अवलंवहो सुहड-किय कहो तणिय पिहिवि कहो तणिय सिय । कहो चिंघई छत्तई चामरई ण सरीरइं जगे अजरामरई म वहहो जीवहं म करहो खउ को जाणइ केत्तहे होइ जउ ज एव-मि सेण्णइ मिलियाई तं वे-वि लेवि णं गिलियाइ.
धत्ता महियले कहि-मि ण माइयउं सरहसु गयणंगणे लग्गउं । केण-वि धरेवि ण सक्कियउं दुप्पुत्तु-व सीसे वलग्गउं ।
[८] तहिं तेहए रण-रए दुन्विसहे भड भिडिय परोप्परु अणिय-वहे । हम्मति हणंति जणंति भउ मारंति मरंति करंति खउ महि मंङिय सिरेहिं स-कुंडलेहि मुहयंदेहिं छण-चंदुज्जलेहि कंठेहिं कंठाहरणंकिएहिं वच्छयलेहि हारालंकिएहिं भुय-सिहरेहिं केऊरासिएहि मणिवंधेहिं कंकण-भूसिएहिं तल-ताणावेढिय-करयलेहि कडिसुत्तालंकिय-कडियलेहि कम-कमलेहिणह-पह-केसरहिं घय-छत्तेहिं चि धेहि चामरेहि . रह-चक्केहिं करि-कुभत्थलेहि रस-बस-वीसढ-सोणिय-जलेहि
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