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________________ रितुणेमिचरिउ २०० सल्ल-सर-सल्लिय कण्ण-कडयावियः भमइ भय-धंधलं सुहड-झड-झप्पियः कुरुव-पहु-पेल्लिय सउणि-संतात्रिय सरण-मण-चंचलं तुरय-गय-चप्पियः घत्ता छुडु छुडु दोणें अक्खय-तोणे पंडव-णाहु णिरत्थु किउ । पय-रक्स्व-वियारिय वाह-पसारिय सच्चइ अतरे ताम थिउ ॥१४ (१६) सो सच्चइ तहिं जो मच्छ-वंसु उत्तम-धणु उत्तम-रायहंसु गुरु पंचहिं वाणेहिं तेण विद्ध इंदियहि महा-रिसि जिह णिसिद्ध जुत्तारु पिसक्केहि दसहि भिण्णु धणु पाडिउ दसहिं धयग्गु छिण्णु वाणासणु गुरु-करे अवरु लग्गु कोद डु-वि परहो दसेहिं भग्गु ४ तेण-वि अवसरेण सरासणेण तिउणेण विद्ध मग्गण-गणेण दियवरेण महाधणु तहो विहत्त कह-कह-वि ण सच्चइ मएणु पत्तु तहिं अवसरे रोस-वसारुणक्ख धरविउइ (1) जुहिट्ठिल-चक्करक्ख पहरिय सर-सएण सएण वे-वि एक्केके भल्ले णिहय ते-वि ८ घत्ता छिण्णई भूमीसई सुहडहं सीसई पडियई सोणिय चच्चियई । णिय-सामिहे ढोएवि णिरिणइ होरवि णाई कवाधई णच्चियई ॥ ९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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