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________________ एउणपण्णासमो संधि १६५ णडणच्चण वणि-गायण-वायण अण्ण-वि अण्ण-भाव-उप्पावण जहिं वसंति तहिं वसहि ण किज्जइ सवि अणेय दढ वियड लइज्जइ इल-सिल-फलिह-तिणहिं संथारउ होइ चउ-बिहु णिव्वुइ-गारउ पुव्वुत्तर-सिरु सेस-दिसा-मुहु अजरामर-पुर-परम-सुहारुहु ८ घत्ता णिज्जावउ एक्कु विरुद्धउ उत्तम-सण्णासे णिउंजहो जइ ण काई तो दुइ सवण । अट्ठाहिय चालीस जण ॥ [८] चर परिचर चर धम्म-कहुज्जय चउ आहार पाणि चउ संजय तं रक्खंति बंधु चउ सवणय अ-विदिगिछ बउ काई वाणय चउ जग्गिर चउ खवग णिहाला चउ दउवारिय च उ सह-पाला अवर चयारि चेइय-परिवारा अवर चयारि विवाइ-णिवारा ४ एवं चयारि चयार णिउंजहो जेम विद्धि तिम पाणि पउंजहो दव्य-पयासण खमण-खमावग पच्चक्खाणउं अणु सिक्खावण खरगहो संघाहिवेण करीवो मिच्छा भावण परिहरिएवी वरि विसु वरि विसहरु वार हुयवहु वरि उव सग्गु सहिउ अइ-दृसहु ८ णउ पच्छाइउ मिच्छा-भावे भव-कोडिहि-मि ण मुच्चहिं पावे* * Extra in j.: पढम दुइज्ज जंति कम्मक्खए केवल-णाणु होइ तिहि पक्खए जो भागाविय जोगि चडप्पइ मोक्खु अपाइ-विओय ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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