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एउणपण्णासमो संधि
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णडणच्चण वणि-गायण-वायण अण्ण-वि अण्ण-भाव-उप्पावण जहिं वसंति तहिं वसहि ण किज्जइ सवि अणेय दढ वियड लइज्जइ इल-सिल-फलिह-तिणहिं संथारउ होइ चउ-बिहु णिव्वुइ-गारउ पुव्वुत्तर-सिरु सेस-दिसा-मुहु अजरामर-पुर-परम-सुहारुहु
८
घत्ता
णिज्जावउ एक्कु विरुद्धउ उत्तम-सण्णासे णिउंजहो
जइ ण काई तो दुइ सवण । अट्ठाहिय चालीस जण ॥
[८]
चर परिचर चर धम्म-कहुज्जय चउ आहार पाणि चउ संजय तं रक्खंति बंधु चउ सवणय अ-विदिगिछ बउ काई वाणय चउ जग्गिर चउ खवग णिहाला चउ दउवारिय च उ सह-पाला अवर चयारि चेइय-परिवारा अवर चयारि विवाइ-णिवारा ४ एवं चयारि चयार णिउंजहो जेम विद्धि तिम पाणि पउंजहो दव्य-पयासण खमण-खमावग पच्चक्खाणउं अणु सिक्खावण खरगहो संघाहिवेण करीवो मिच्छा भावण परिहरिएवी वरि विसु वरि विसहरु वार हुयवहु वरि उव सग्गु सहिउ अइ-दृसहु ८ णउ पच्छाइउ मिच्छा-भावे भव-कोडिहि-मि ण मुच्चहिं पावे*
* Extra in j.: पढम दुइज्ज जंति कम्मक्खए केवल-णाणु होइ तिहि पक्खए
जो भागाविय जोगि चडप्पइ मोक्खु अपाइ-विओय !
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