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मिच्छत्त-महा-विस - पायउ पंचेदिय-चोर जिणेपिणु
जम्माडइ-भय-परिहीणेण जइ सक्कहि तो जाइज्जइ
घत्ता
कहमि मोक्खु जड जाएवि सक्कहि पणारह पमाय विहाडावहि णिच्च धम्म झाणु सुविणिग्गमे कम्मबंध - छत्तीस - विणा सें वायर - मोह-पगइ विहडावहि जइ णिम्मूल मोह - तरु हम्मइ मोक्खु अघाई - विओए विढप्पइ
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एक्कई एक्केकई सु-गवेसहि एकइं विष्णि विष्ण उद्धारहि एक तिणि तिणि अणुमण्णहि एकहिं चहुं चहुँ दिदु होज्जहि एक्कई पंच पंच परिपालहि अवरहं छहं छहं जाउं म लेज्जहि अवरई सन्त सत णि उभच्छहि अवरइं अट्ठ अट्ठ पडिवज्जहि
हणु सम्मन्त कुढारपण । पण जाहि सुह-गारएण ॥ १०
घत्ता
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अद्ध-बहे जे जाहिं ण-वि थक्कहि अप्पमत्त-गुण-ठाण विहावहि चडहि अपुव्व - करणु सुक्कुग्गमे चडु अणेवि तिथाणु (१) परिओसें ४ सहुम- संपरायन्त्तणु पावहि खीण- कसाय - थाणु तो गम्मइ
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रिट्टणेमिचरि
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विसय- चोर - विणिवारएण । तेण पहेण वड्डारएण ||
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अवरई एक्केकई परिसेसहि अवर विणि विणि विणिवाहि अवरई तिष्णि तिष्णि अवगण्णहि अवरहं चउहुं चउहुं णासेज्जहि ४ एक छह छह रक्ख करिज्जहि एक्कई सत्त सत परियच्छहि एक्कई अट्ठ अट्ठ पडिच्छहि
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