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________________ १६६ मिच्छत्त-महा-विस - पायउ पंचेदिय-चोर जिणेपिणु जम्माडइ-भय-परिहीणेण जइ सक्कहि तो जाइज्जइ घत्ता कहमि मोक्खु जड जाएवि सक्कहि पणारह पमाय विहाडावहि णिच्च धम्म झाणु सुविणिग्गमे कम्मबंध - छत्तीस - विणा सें वायर - मोह-पगइ विहडावहि जइ णिम्मूल मोह - तरु हम्मइ मोक्खु अघाई - विओए विढप्पइ [९] Jain Education International एक्कई एक्केकई सु-गवेसहि एकइं विष्णि विष्ण उद्धारहि एक तिणि तिणि अणुमण्णहि एकहिं चहुं चहुँ दिदु होज्जहि एक्कई पंच पंच परिपालहि अवरहं छहं छहं जाउं म लेज्जहि अवरई सन्त सत णि उभच्छहि अवरइं अट्ठ अट्ठ पडिवज्जहि हणु सम्मन्त कुढारपण । पण जाहि सुह-गारएण ॥ १० घत्ता - अद्ध-बहे जे जाहिं ण-वि थक्कहि अप्पमत्त-गुण-ठाण विहावहि चडहि अपुव्व - करणु सुक्कुग्गमे चडु अणेवि तिथाणु (१) परिओसें ४ सहुम- संपरायन्त्तणु पावहि खीण- कसाय - थाणु तो गम्मइ X रिट्टणेमिचरि X विसय- चोर - विणिवारएण । तेण पहेण वड्डारएण || For Private & Personal Use Only X [१०] अवरई एक्केकई परिसेसहि अवर विणि विणि विणिवाहि अवरई तिष्णि तिष्णि अवगण्णहि अवरहं चउहुं चउहुं णासेज्जहि ४ एक छह छह रक्ख करिज्जहि एक्कई सत्त सत परियच्छहि एक्कई अट्ठ अट्ठ पडिच्छहि X x x ९. ८ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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