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________________ एउणपण्णासमो मंधि एकहि णव णव लइ सुपसिद्धई एक्कई दस दस अणु दणु झायहि अवरई णव णव मुए अ-पसिद्ध अवरई दस दस दूरि पमायहि घत्ता एयारह वारह तेरह एयारह वारह तेरह चउदह एक्कई आयरहि । चउदह अवरइ परिहरहि ॥ १० [११] एम लेवि अणुसिट्ठि पयत्त तिविहु करेवउ पच्चक्खाणउं तमिमु मणोहरु पच्छ-सुयंधउ अमिय-रसोवमु मुह हो सुहावउ एव-मि जइ ण होइ आसासण लेउ विमद्दण सेउ करेवउ जइ एम-वि ण होइ सुह-सेवउ लहइ समाहि जेण तं किज्जइ संथारत्थे उत्तम-सत्तें पर-वाहिरउ करेपि अपाणउं विविह-महाघण-दव्व-समिद्धउ दोह-णिवारणु चित्तें ण्हावउ ४ तो उवणेहु णितूह उववासण पवण-पित्त-कफ-दोसु हरेवउ संघाहिवेण तो-वि ण मुएबउ अह मंतेवि तणु-ताणउं दिज्जइ ८ घत्ता उवसग्ग-परीसह-साहणु संथारणेण मरंतेण - किज्जइ जेण परम्मुहउँ । कवउ लहेवउ साउह ॥ ९ [१२] एम तेण तणु-ताणु लएवउ संधाहिवेण खबउ धीरेवउ सुंदरु पवा गोनु णिय-णामउं परिहरि कम्मु कुमाणुसियामा जिह रिमि-गणहो मञ्झे गलगज्जिउ तिह करि महसु मलण-विवज्जिउ मोक्ख-महादुम-फलई विवित्तइ लइ परिपक्कई पुणु पविहत्तई ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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