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रिट्ठणेमिचरित
देवेहि सग्ग-मग्ग सोहालिय उग्घाडिय पओलि जा तालिय वहई तोरणाई छड दिण्णई मोत्तिय-रंगावलिउ पइण्णउं गरुव -महोच्छउ सुरवर-विदहो वद्धावणउं धणंगणे इंदहो भाव-णिसेणि चडेप्पिणु जोयहो मं अप्पाणउं घंघले ढोयहो
घत्ता चउ-गइ संसारे भमंतहो दुक्खई कह-मि तुहाराई । जइ एकई विहि मेल्लावेवि ते मेरुहे गरुयाराई ::
[१३] तिहुयणु खद्ध तो-वि अ-सइत्तर पीयइं सायर-सयई ण तित्तउ कामिउ जगु असेसु कामंते मयिलो (?) कोडि दद्ध दम्भंते जइयहो इंदु होइ उप्पणउ पच्छए चवण-काले आदण्णउ कहिं कप्पदम कहिं दीसेसहि अइरावणु दूरीहोएसइ हा अंतेउर णयण-मणोहर मत्त -महागय-कुंभ-पओहर पडिवउ गब्भवासे वासएवउ पडिवउ जणणिहे थण्णु पिएबउ एवं रुवतु थंतु विच्छायउ मणुय-गइहे उप्पणु वरायउ तहि-मि अणेयई दुक्खइं पत्तउ रस-वस-वीसढ-घोणिए-मत्तउ
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घत्ता
दप मास वसिउ उवरंतरे कह-व किले से गोरिउ । अच्छिउ णिज्जासु पियंतउ तं किं एवहिं वीसरिउ ॥ ९
[१४] इह वि अणेय वार उप्पण्णउ जाइ-जरा-मरणेहिं आदण्णउ इट्ट-विओय-सोय-संतत्तउ दुक्ख-किलेस असेसई पत्तर चोर-वइर-महि-महिला-भंडणु वाहाकर-चरणंगुल खंडणु जीहा-छेउ णयण-उप्पाडणु णासा-णासणु वयण-विहोडणु ४
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