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________________ १६४ रिटुणेमिचरिउ घत्ता जइ ण गयई कह-३ पमाएण सल्लई हियवए लग्गाइ। तो भव-चउरासी-लखेहिं दुहइ देति आवग्गाइ ॥ ९ [६] माया-मिच्छा-भाव-णियाणइ तिण्णि-वि सल्लइ सल्ल-समाण जेण ण फेडियाइ अवलोएवि तहो दुहु दिति अचस्थए ढोएवि अहि जिह् णी सारिजइ गेहहो । दुपरिअल्लु सल्लु तिह देहहो सयल काल दुच्चरिएं भरियां तदिवसावहि सो पवइयउ तही सामण्णालोयण जुज्जई अवरहो पाइ विहाइउ वज्जइ तहि पर सक्खि पुत्व-छम्मन्थहो अप्प सक्खि केवलि कियत्थहोहि स-वि सुपसत्थ-पएसे करेवी संधाहिवेण मणेण धरेवो उत्तर-मुहेण अहव पुव्वासे अह जिणविवहा समुहब्भासे ४ ८ घत्ता दस-दोस-विवज्जिाउ खवगेण तहो पायच्छित्तु-वि देवउ आलोएवउ जिय-चरिउ ! आयरिएण जिणायरिउ ॥ ९ दसबिहु दोसु जिणागमे सिट्ठउं आयण्णिउ अणुमण्णिउ दिदठउं वायरु सुहुमु छण्णु सहत्थिउ वहु-गुरु-वालवुद्धि-पासस्थिउ इय दस दोस जेण णालोइय अप्पाणहो भवित्ति ते ढोइय णइरवणालिभंगोधावण (?) मंदुल-हत्थिसाल-करणावण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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