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उणपण्णासमो संधि
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[४] तहि मि खेत्ते परिमाण किज्जइ मंधाहिव हो पासु दुक्किजइ आयाराइ-अट्ठ गुण गणिया आचेलक्क-पमुह दह भणिया बारह तब छावास-विसुद्धा गुण छत्तीस ओए अविरुद्धा जसु सो परमायरिउ पगासिउ तं विण्णवइ णवेवि सण्णासिउ ४ के तउ कु कलेवरु परिवड्ढमि तुम्हहौं पाय-मूले परिछड्डमि भणइ महा-रसि तुहुं जगे धण्णउ जसु वइरग्ग-भाउ उप्पण्णउ मरण-मणोरहु दूरुवराइय लइ आराहण वीर-वडाइय धीरउ होहिं जाम जत्तारेहिं आलोयमि सहुँ णिय-परिवारहिं ८
धत्ता
परिचितेवि सीसायरिएहि णिउणत्तणेण णिरिक्खियउं । कस-ताव-छेय तिहिं भंगिहि जहिं दीणारु परिक्खियउं ॥
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[५]
४
दिवस-वार-णक्खत्त-मुहुत्तेहि होरा-कड्ढण-दिव्व-णिमित्तेहि देस-रिंद-साहु -गण-सत्थेहि आएहि अवरेहि-मि सुह-उत्थेहि संघाहिवेण संघु पुच्छेवउ तेण-वि खबग-भारु इच्छेवउ एक्कु णिविठु दव्बु सत्थारए थिउ भावंतु अवरु तहि वारए आगमे तइयउ खवगु णिसिद्धउ धूमारहि थाणु सुपसिद्धर भणइ म -रिसि आगम-लोयणु दिक्खहे लग्गेवि करि आलोयणु कंटउ डहइ पाए जिह भग्गउ तिह कलंकु जो हियवए लग्गउ सो कड्ढणह तीरइ हत्थे परिफिट्टइ आलोयण-सत्थे
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